________________
अध्याय
युज आदिके ही गर्भ आदि होते हैं यह जन्मोंका ही नियम मानना चाहिए, जन्मवानोंका नहीं। यदि 8 यहांपर यह शंका की जाय कि
___ जरायुज आदिके ही गर्भ आदि होते हैं वा जरायुज आदिके गर्भ आदि ही होते हैं इसप्रकार र जन्म और जन्मी दोनोंके नियमोंको यहां हम स्वीकार करते हैं ऐसा करनेपर जरायुज आदिके गर्भ *
और उपपाद अव्यभिचरितरूपसे हो सकते हैं अर्थात् जरायुज आदिके ही गर्भ उपपाद होते हैं ऐसा हूँ है जन्मोंका नियम माननेपर यद्यपि उनके संमूर्छन जन्मका भी संभव होता है परंतु उनके गर्भ उपपाद ही है है जन्म होते हैं यह जन्मवालोंका जब नियम माना जायगा तब उनके संमूर्छन जन्मका संभव नहीं हो ।
सकता इसरीतिसे जरायुज आदिके निर्दोषरूपसे गर्भ और उपपाद निश्चित है और उनसे बचे जितने जीव हैं उनके बिना किसी प्रकारका उल्लेख करनेपर भी संमूर्छन जन्म अर्थतः सिद्ध है फिर 'शेषाणामेव संमूर्छन' यह सामान्य कथन होनेसे उस कथनकेलिए 'शेषाणां संमूर्छन' इस सूत्रका आरंभ व्यर्थ है ? सो छ ठीक नहीं । उपर्युक्त जन्मोंके नियमकी जो कल्पना की गई है वह 'शेषाणां संमूर्छन' इस सूत्रके शेष शब्दकी ध्वनि से की गई है। वह ध्वनि एक ही प्रकारका नियम ध्वनित कर सकती है दोनों प्रकारके है नियमोंके द्योतनमें उसकी सामर्थ्य नहीं इसलिए यहाँपर दोनों नियमों में एकही कोई नियम अंगीकार करना होगा तथा शेष शब्दकी धानसे जब ऊपर नियमकी प्रकटता हुई है तब जन्मोंके नियममें ही
शेष शब्दकी सामर्थ्य है जन्मवानोंके नियममें नहीं इसलिए जन्मों के नियमके निर्धारण रहनेपर 'शेषाणां * संमूर्छनं' इस सूत्रका आरंभ सार्थक है व्यर्थ नहीं ॥३५॥ गर्भ आदि तीन प्रकारके जन्म और अनेक भेदोंसे युक्त नौ प्रकारको योनियोंके धारक संसारी
* ७१०
LORICSSCIESCRACTECNICALCONSTRIES