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________________ S मध्याय वरा० मापा ६६७ || स्पर्श ये दो ही गुण माने हैं गंध और रसका उसमें अभाव है और वायुमें केवल स्पर्श ही गुण माना है। ॥६|| शेष गुणोंकी वहाँपर योग्यता नहीं इसलिये उनका अभाव है। परंतु नैयायिक आदिका यह मानना || | ठीक नहीं क्योंकि इन चारों गुणोंका आपसमें साहचर्य संबंध है। जहांपर एक होगा वहां शेष गुणोंके || || अविभाग प्रतिच्छेद-गुणांश कम होनेके कारण वे व्यक्त भले ही न हों परंतु उनका अभाव नहीं कहा है जा सकता। अनुमान प्रमाणसे स्पर्श आदि गुणोंमें किसी एक व्यक्त गुणके साथ शेष गुणोंकी भी सचा मानी है और वह इसप्रकार है 'रूपादिमान् वायुः स्पर्शवत्वाद्धटवत् । जिसतरह घटमें स्पर्श है इसलिये उसमें रूप आदि भी हैं। || उसीप्रकार वायुमें भी स्पर्श है अतः उसमें भी रूप आदि है। सदा सहचारी स्पर्श गुणके रहते वायुमें रूप 8 आदिका अभाव नहीं कहा जा सकता। तेजोऽपि रसगंधवदुरूपत्त्वादुगुडवत् जिसतरह गुडमें रूप है है। इसलिये उसमें रस और गंध भी है उसीप्रकार तेजमें भी रूप है अतः उसमें भी रस और गंध है। रूपके है रहते रस और गंधका उसमें अभाव नहीं कहा जा सकता। 'आपोऽपि गंधवत्यः रसवत्त्वादाम्रफलवत्' है। | जिसप्रकार आम्रफलमें रस है इसलिये उसमें गंध भी है उसीप्रकार जलमें भी रस है इसलिये उसमें भी |गंध है रसके मौजूद रहते जलमें गंधका अभाव नहीं कहा जा सकता। तथा जल आदिमें प्रत्यक्षरूपसे | गंध आदि गुणोंकी प्रतीति होती है इसलिये गंध आदि गुणोंका उनमें अभाव नहीं हो सकता । यदि | यहांपर यह शंका की जाय कि ___गंध आदिजल आदिके निजी गुण नहीं, वे पृथिवीके ही निजी गुण हैं किंतु पृथिवीके परमाणुओंका है। संयोग जल आदिके साथ रहता है इसलिये संयोगवश पृथिवीके गुण जलके जान पडते हैं ? सो ठीक नहीं। SRAMESGRACRISRAEBARISSAUGAADI ACSIRSAECAMEREMOCREARRESPECIPES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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