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|| हे वे ही स्थावर हैं यही स्थावर शब्दका अर्थ माना जायगा तो जो पदार्थ ठहरने वाले हैं वे ही स्थावर
कहे जायगे, पवन आदि स्थावर न कहे जा सकेंगे। यदि यहाँपर यह कहा जाप कि जब स्थावर शब्दका व्युत्पचिसिद्ध अर्थ न लिया जायगा तब तिष्ठतीतिस्थावरा' इस रूपसे उसकी सिद्धि बाधित है ? सो ठीक नहीं। यह केवल व्युत्पचिमात्र प्रदर्शन है । व्युत्पचि सिद्ध अर्थकी यहां प्रधानता नहीं किंतु रूढिकी विशेषतासे जो अर्थ प्रसिद्ध है उसीकी यहां प्रधानता है । वह रूढि सिद्ध अर्थ 'जोजीव स्थावर नामकर्मके उदयसे हों वे स्थावर हैं' यही है इसलिए यहां इसी अर्थका ग्रहण है। यदि यहांपर वादी यह कहे कि
इष्टमेवति चेन्न समयार्थानवबोधात् ॥५॥ स्थावर शब्दका यदि स्थानशील अर्थ किया जायगा तो पवनं आदि चलनक्रिया परिणत पदार्थ है। स्थावर न कहे जा सकेंगे यह ऊपर दोष दिया गया है परंतु उनको स्थावर न होना हमें इष्ट ही है इसलिए
जो ठहरने वाले हों वे ही स्थावर हैं यही स्थावर शब्दका अर्थ ग्रहण करना चाहिए ? सो ठीक नहीं। | वादीको सिद्धांतके अभिप्रायका यथार्थज्ञान नहीं क्योंकि सिद्धांतमें सत्यरूपणाके कायानुवाद प्रकरणमें
दो इंद्रियको आदि लेकर अयोग केवली पर्यंत जीवोंको त्रस माना है। एकेंद्रिय जीवोंको कहीं भी त्रस | पनेका विधान नहीं। यदि पवन अग्नि आदि कायके जीवोंको त्रस माना जायगा तो आगमविरोध | होगा क्योंकि ये एकेंद्रिय जीव हैं इसलिए जो जीव त्रस और स्थावर नामकर्मके उदयसे हों वे ही त्रस | और स्थावर हैं यही त्रस और स्थावर शब्दका निर्दोष अर्थ है किंतु भयसे भाग जाने वाले त्रस और है। ठहरने वाले स्थावर यह अर्थ नहीं स्थावर नामकर्मका उदय पवनकाय आदि जीवोंके है इसलिए वे | स्थावर ही हैं । अन्यथा जो बैठे हुए मनुष्य पशु आदि हैं वे भी स्थावर सिद्ध होंगे
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