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________________ - HDPEPERMANGADRASIERRESEARE | . " उपयोग पदार्थ अनवस्थित है क्षण भरमें विनष्ट हो जानेवाला है इसलिये वह आत्माका लक्षण नहीं हो सकता यह कहना ठीक नहीं क्योंकि उपयोग पदार्थका न तो सर्वथा नाश हो सकता है और 8 अध्या है न अवस्थान ही हो सकता है किंतु पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा विद्यमान रहनेपर भी उसकी उपलब्धि | नहीं होती इसलिये उसका कथंचित् विनाश माना है और द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा सदाउसका सद्भाव | रहता है इसलिये कथंचित् उसका अवस्थान माना है इसरूपसे जब उपयोगका कथंचित् अवस्थान सिद्ध है तब उसे आत्माका लक्षण माननेमें किसी प्रकारकी बाधा नहीं हो सकती। तथा तदुपरमाभावाच्च ॥ २२ ॥ सर्वथाविनाशे पुनरनुस्मरणाभावः ॥ २३॥ उपयोगको ज्ञानदर्शन स्वरूप माना है। यह नियम है प्रतिक्षण कोई ज्ञान पर्याय उत्पन्न होती है 5 और कोई नष्ट होती है । उपयोगकी परंपराका कभी भी नाश नहीं होता इसलिये आत्माका उपयोग है लक्षण बाधित नहीं कहा जासकता। । यदि उपयोग पदार्थका सर्वथा नाश माना जायगा तो जिस पदार्थका पहिले प्रत्यक्ष हो चुका है | उसका स्मरण होता है अब वह नहीं हो सकेगा क्योंकि स्मरण भी उपयोग स्वरूप ही है तथा यह नियम ४ा है कि जो पदार्थ पहिले प्रत्यक्षका विषय हो चुका है उसीका स्मरण होता है किंतु जिस पदार्थका पहिले प्रत्यक्ष नहीं हुआ है अथवा किसी अन्य आत्माने प्रत्यक्ष किया है उसका स्मरण नहीं होता तथा जब हूँ। स्मरणका ही नाश हो जायगा तब जितना भी लोकका व्यवहार है वह समस्त स्मरण ज्ञानके आधीन है, स्मरणके नाशके साथ फिर उसका भी नाश हो जायेगा परंतु वैसा होता नहीं इसलिये उपयोगका सर्वथा नाश नहीं माना जा सकता किंतु कथंचित् उसका अवस्थान है इसरातिसे उसे आत्माका लक्षण |PER | मानने में कोई आपचि नहीं हो सकती। यदि यहांपर यह शंका की जाय कि RUPEEGMERAGEROUPREDNERISPERIES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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