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एवं सत्स्वरूप विज्ञान आदिमें भी वह विद्यमान है क्योंकि वादी विज्ञान आदिको अप्रत्यक्ष मानाता है ६ इसरीतिसे सत्स्वरूप विज्ञानादि पक्ष और असस्त्वरूप शशविषाण आदि विपक्षमें रहने के कारण अप्र18 त्यक्षत्व हेतु अनेकांतिकहेत्वाभास है। यदि यहाँपर यह कहा जाय कि--
विज्ञान आदिका स्वसंवेदन प्रत्यक्ष होता है और योगियोंका प्रत्यक्ष भी उसे विषय करता है इस-६ लिये विज्ञान आदिके रहनेपर अप्रत्यक्षत्व हेतुका वहांपर अभाव है। तब आत्माका भी वैसा माननेमें है । क्या आपत्ति है। क्योंकि आत्मा भी 'अहं अहं' इस स्वसंवेदन प्रत्यक्षके गोचर है और योगी केवली है * आदिके ज्ञान का विषय है । इसरीतिसे जब अप्रत्यक्षत्व हेतु असिद्ध विरुद्ध और अनेकांतिकरूप दोषों से से दुष्ट है तब उससे आत्माका नास्तित्व सिद्ध नहीं हो सकता। तथा--
उपयुक्त अनुमानमें शशशृंग दृष्टांत दिया गया है उसमें पूर्वोक्त रीतिसे प्रत्यक्षत्व और अस्तित्व 11 ही सिद्ध है इसलिये नास्तित्व और अप्रत्यक्षत्वरूप साध्यसाधनरूप धर्मों के अभावसे वह आत्माकी ६ नास्तित्व सिद्धि में कारण नहीं बन सकता इसलिये उसके बलसे आत्माकी नास्तिताकी सिद्धि बाधित है। और भी यह बात है कि
संसारमें जितने भी वाक्यार्थ हैं सब ही विधि और प्रतिषेध स्वरूप हैं। ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं जो सर्वथा निषेधका ही विषय हो किंतु जो भी पदार्थ होगा वह विधि और निषेध दोनों स्वरूप ही होगा। जिसतरह 'कुरवका अरक्तश्वेता' कुरवक जातिके वृक्ष रक्तवर्ण और श्वेतवर्णसे रहित हैं। यहां पर रक्तवर्ण और श्वेतवर्णका निषेध किया गया है इसलिये वे रक्त ही हैं वा श्वेत ही हैं, यह भी नहीं कहा जा सकता । साथमें वे अवर्ण हैं-उनमें कोई वर्ण नहीं यह भी नहीं कहा जा सकता इसरीतिसे
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