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________________ AA अध्याप A ब०रा० भाषा ५७९ BOLLEGEDGESECRECOGSAOCISFIERIES भाव नामका पहिला भंग है जिसप्रकार संयमी अवधिज्ञानी । क्षायोपशमिकोदायकसान्निपातकजीव भाव नामका दूसरा भंग है जिसतरह संयमी मनुष्य । क्षायोपशमिकौपशमिकजीवभाव नामका तीसरा भंग है जिसतरह संयमी उपशांतकषायवाला । क्षायोपशमिकक्षायिकसान्निपातिकजीवभाव नामका चौथा भंग है जिसप्रकार संयतासंयत क्षायिकसम्यग्दृष्टि और क्षायोपशमिकपारिणामिक सान्निपातिक जीवभाव नामका पांचवां भंग है जिसतरह अप्रमत्तसंयमी जीव । दो पारिणामिक भावोंका आपसमें संयोग रहनेपर तथा पारिणामिक भावके साथ औदायक आदि चारों भावोंमसे एक एकका संबंध रहनेपर भी पांच भंग होते हैं। उनमें पारिणामिकपारिणामिकसन्निपातिकजीवभाव नामका पहिला भंग है जिसप्रकार जीव भव्य । पारिणामिकौदयिकसान्निपातिक जीव भाव नामका दूसरा भंग है जिसतरह जीवक्रोधी। पारिणामिकापशमिक सान्निपातिक जीव भाव नामका तीसरा भंग है जिसप्रकार भव्य उपशांतकषायवाला । पारिणामिकक्षायिकसान्निपातिकजीव | भाव नामकाचौथा भंग है जिसतरह भव्य क्षीणकषायवाला । और परिणामिकक्षायोपशामिकसान्निपातिकजीवभाव नामका पांचवां भंग है जिसप्रकार संयमी भव्य । इसप्रकार ये पचीस द्वि भाव संयोगी | भंग पहिले कहे हुए दश त्रिभावसंयोगी भंग और एक पंच भावसंयोगी भंग मिलकर छत्चीस भंग हैं। । तथा पहिले चतुर्भावसंयोगी पांच भंग बतलाये हैं। इन छचीस भंगोंमें उन पांच भंगोंके जोड देने पर सान्निपातिक भावके इकतालीस भंग हो जाते हैं इसीप्रकार और भी बहुतसे भेद सान्निपातिकभावके | हैं वे आगमके अनुसार समझ लेने चाहिये शंका औपशमिकाद्यात्मतत्त्वानुपत्तिरतद्भावादितिचेन्न तत्परिणामात ॥२५॥ AAABELBAREILCALCILITIESCEBCAL ५७९
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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