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अध्याय
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है सबमें रहनेके कारण वह साधारण है और अपनी उत्पत्ति में कर्मों के उदय क्षय आदि किसीकी भी अपेक्षा में नहीं रखता इसलिये पारिणामिक भाव है। यहांपर कुछ साधारण पारिणामिक भावोंका उल्लेख कर में
दिया गया है किंतु आत्माके और भी बहुतसे साधारण और पारिणामिकभाव हैं उन सबकी इसीप्रकार , योजना कर लेनी चाहिये । शंका___ अनंतरसूत्रनिर्दिष्टोपसंग्रहार्थश्वशब्द इति चेन्नानिष्टत्वात् ॥ १४ ॥
त्रिभेदपारिणामिकभावप्रतिज्ञानाच्च ॥ १५॥ 'जीवभव्याभव्यत्वानि च' इस सूत्रमें जो च शब्दका उल्लेख किया है उसे अस्तित्व आदि धौका है ग्राहक न मानकर 'गतिजाति शरीरेत्यादि' पहिले सूत्रमें जो गति आदिका उल्लेख किया है उनका है ग्राहक मानना चाहिये ? सो ठीक नहीं। पारिणामिकभावका जो लक्षण कहा गया है वह गति आदिमें , नहीं घट सकता इसलिये गति आदिको पारिणामिकभाव नहीं माना जा सकता । और भी यह बात
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___ भावोंकी संख्या प्रतिपादन करनेवाले 'औपशमिक क्षायिकाभावी' इत्यादि सूत्रमें पारिणामिक हूँ भावको तीन ही प्रकारका माना गया है इसलिये च शब्दसे गति जाति आदिका समुच्चय नहीं किया जा सकता। शंकागत्यादीनामुभयवत्त्वं क्षायोपशमिकभाववदिति चेन्नान्वर्थसंज्ञाकरणात् ॥ १६॥
तथानभिधानात् ॥ १७ ॥ अनिर्मोक्षप्रसंगात् ॥१८॥ जिसतरह क्षायोपशमिक भाव क्षय और उपशमस्वरूप दोनों प्रकारके हैं उसीप्रकार गति जाति