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________________ SRIESELEASAHEREGARGALACHCHOCHHABISrian जीवकी सामर्थ्य विशेष है। उसका पुद्गलीक आयुकर्मके उदयसे जीवमें प्रगट होना असंभव है। यदि कदाचित् जबरन पुद्गलीक आयुकर्मके उदयसे जीवमें जीवत्व शक्तिकी प्रकटता मानी जायगी तो , 3 आयुकर्मका संबंध तो धर्म अधर्म आदि अचेतन द्रव्योंके साथ भी है । उसके संबंधसे उनमें भी जीवत्व ६ शक्तिकी प्रकटता मान लेनी चाहिये और उन्हें चेतन कहना चाहिये परंतु उनमें वैसा नहीं हो सकता है हूँ इसलिये आयुकर्मके उदयसे जीवत्व भावकी प्रकटता नहीं हो सकती किंतु वह पारिणामिक ही भाव है। और भी यह बात है कि ___ यदि आयुकर्मके उदयसे ही जीवत्व भाव माना जायगा तो सिद्धोंमें जीवत्वकी नास्ति कहनी । है पडेगी क्योंकि उनके आयुकर्मका संबंध नहीं है इसलिये उन्हें अजीव कहना पडेगा परंतु सिद्धोंमें जीवत्व भावकी नास्ति नहीं इसलिये उसकी उत्पचि आयुकर्मके आधीन न मानकर वह पारिणामिक भाव ही मानना पडेगा। शंका जीवे त्रिकालविषयविग्रहदर्शनादिति चेन्न रूढिशब्दस्य निष्पत्त्यर्थत्वात् ॥५॥ ____ जो जीता है पहिले जीया और आगे जीवेगा इसप्रकार जीव शब्दका तीनों कालसंबंधी विग्रह हूँ दीख पडता है तथा यहांपर जीव शब्दका अर्थ प्राण धारण करनेवाला है। प्राण धारण करने में कमकी अपेक्षा करनी पड़ती है इसरीतिसे जब जीवत्व भाव कर्मापेक्ष सिद्ध होता है तब वह पारिणामिक भाव नहीं हो सकता ? सो ठीक नहीं। जितने भी रूढिशब्द हैं उनकी भूत भविष्यत् वर्तमान कालके आधीन जो भी क्रिया है, वे केवल उन्हें सिद्ध करनेकेलिये हैं उनसे जो अर्थ द्योतित होता है वह नहीं लिया * ५५५ जाता। जिसतरह गोशब्दका व्युत्पत्ति सिद्ध अर्थ 'गच्छतीति गौः' अर्थात् जो जावे वह गाय है, यह है K AISGISTRASTRIAL
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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