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________________ 13SIR SAHEBOOPLEARCINGECHUGESABIRBA परशुः" फरसा द्रव्य है। यहां पर द्रव्य शब्द नपुंसकलिंग और परशु पुल्लिंग है । नपुंसकलिंगकी जगह पुंलिंग कहनेसे लिंग व्यभिचार है।। एक वचनकी जगह द्विवचन, एक वचनकी जगह बहु वचन आदिका कहना संख्याव्यभिचार है | | जिसतरह-नक्षत्रं पुनर्वसू' पुनर्वसु नक्षत्र है, यहाँपर नक्षत्र शब्द एकवचनांत और पुनर्वसू शब्द दिवः | चनांत है। यहाँपर एकवचनकी जगह द्विवचन कहनेसे संख्या व्यभिचार है। 'नक्षत्रं शतभिषज' शत| भिषजा नक्षत्र हैं, यहां पर नक्षत्र शब्द एकवचनांत और शतभिषग् शब्द बहुवचनांत है इसजगह एक | वचनके स्थानपर वहुवचन कहनेसे संख्या व्याभिचार है। गोदौ ग्रामः" गौओंको देनेवाले गाव हैं। यहां | पर गोद शब्द द्विवचनांत और ग्राम शब्द एक वचनांत है । इसजगह द्विवचनके स्थानपर एकवचन कहनेसे संख्या व्यभिचार है । 'पुनर्वसू पंच तारका पांच तारे पुनर्वसू हैं। यहां पुनर्वसू शब्द द्विवचनांत और पंचतारका शब्द बहुवचनांत है इसस्थानपर द्विवचनके स्थानपर बहुवचन कहनेसे संख्याव्यभिचार है 'आम्रा वन' आमके वृक्ष वन हैं, यहाँपर आम्र शब्द बहुवचनांत और वन शब्द एक वचनांत है इस | जगह वहुवचनके स्थानपर एकवचन कहनेसे संख्या व्यभिचार है तथा 'देवमनुष्या उभी राशी देव और मनुष्य ये दो राशि हैं। यहां पर देव मनुष्य शब्द बहुवचनांत और राशिशब्द द्विवचनांत है। इस || जगह बहुवचनकी जगह द्विवचन कहनेसे संख्या व्यभिचार है इसकी निवृत्ति शब्दनयसे होती है अर्थात् | पुंलिंगके साथ स्त्रीलिंगका प्रयोग करना अथवा एकवचनके साथ बहुवचनका प्रयोगकरना आदि शब्द | नयको अपेक्षा व्यभिचार है। इसीप्रकार युस्मद् शब्दकी जगह अस्मद् शब्दके प्रयोगको वा अस्मद् शब्दकी जगह युस्मद् शब्द HOTSABASABAS A A
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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