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________________ अध्याय रा० भाषा GHBHISHEDOS902061-5GALSAREECEBS जलना माना जायगा तो उसीके कुछ अवयवोंके न जलनेसे संपूर्ण पलालका नहीं भी जलना (अदाह) माना जा सकता है। यदि यह कहा जायगा कि कुछ अवयवोंके जलनेसे संपूर्ण पलालमें दाह ही मानेंगे | अदाह नहीं मान सकते तो वहां पर यही समानरूपसे उत्तर है कि कुछ अवयवोंमें अदाह-न जलना | देखकर संपूर्ण पलालमें अदाह ही क्यों नहीं माना जायगा ? इसरीतिसे यह बात सिद्ध हो चुकी कि ऋजुसूत्रनयके विषयभूत एक समयमें संपूर्ण पलालका जलना नहीं हो सकता इसलिये पलालका जलना ऋजुसूत्रनयका विषय नहीं कहा जा सकता किंतु उसका अभाव ऋजुसूत्रनयका विषय है। का इसीप्रकार पानी पीना भोजन करना आदि भी असंख्याते समयोंके कार्य हैं और ऋजुसूत्रनयका विषय एक समयवर्ती पर्याय है इसलिये ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा उनका व्यवहार नहीं हो सकता। S तथा सफेद रंग काला होता है यह भी ऋजुसूत्रनयका विषय नहीं क्योंकि ऋजुसूत्रनय एक समद यवर्ती पर्यायको विषय करता है सफेद रंगका काला होना अनेक समयसाध्य बात है इसलिये 'सफेद | काला नहीं होता है' यही ऋजुसूत्रनयका विषय मानना चाहिये । शंका - यदि ऋजुसूत्रनयका विषय वर्तमानकालीन एक समयवर्ती पर्याय ही मानी जायगी तो खाना| पीना आदि पर्याय अनेक समयसाध्य हैं इसलिये इस नयकी अपेक्षा जब वे सिद्ध न हो सकेंगे तब | संसारसे उनका नाम ही उठ जायगा। सो ठीक नहीं। यहाँपर ऋजुसूत्रनयका विषयमात्र दिखाया गया है। खान पान आदि व्यवहारोंकी सिद्धि नैगम आदि जो पहिले नय कह आये हैं उनसे निर्वाधरूपसे होती है। इसलिये कोई दोष नहीं। इसप्रकार यह ऋजुसूत्रनयका.व्याख्यान किया गया है। शपत्यर्थमाह्वयति प्रत्याययतीति शब्दः॥८॥स च लिंगसंख्यासाधनादिव्याभिचारनिवृत्तिपरः॥९॥ N DANIELITaman RECACAASALALASGAAAALODASAN aa ISEDCASNA . . ४७५
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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