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________________ BREPIDEOS अध्याय P कोई पुरुष कहींसे आकर बैठा है किसी दूसरेने पूछा-कहो भाई कहाँसे आरहे हो ? उससमय उसका यह कहना कि कहीसे नहीं आरहा हूं क्योंकि उससमय सर्वथा गमन क्रियाका अभाव है इसलिये शुद्ध वर्तमानकी अपेक्षा 'इससमय कहींसे नहीं आरहा हूं' यह ऋजुसूत्रनयका विषय है। तथा- . किसी बैठे आदमीको देखकर यह पूछना कि भाई ! इससमय तुम किस स्थान पर हो ? उससमय वर्तमानमें वह जितने आकाशके प्रदेशोंमें मोजूद है उतने ही प्रदेशोंका नाम लेकर कहे कि मैं यहां पर हूं, किसी शहर गांव घर आदिका नाम नहीं ले, वह शुद्ध वर्तमान कालकी अपेक्षा कथन होनेसे ऋजु सूत्रनयका विषय है । अथवा उससमय जितने आत्मप्रदेशोंके आकारमें उसका रहना हो उतने ही प्रमाण आत्म प्रदेशोंका उल्लेखकर वह यह कहे कि मैं यहांपर हूं वह ऋजुसूत्रनयका विषय है क्योंकि उसकी स्थितिका शुद्ध वर्तमान समयमें वही आकार है, अन्य नहीं। तथा . काक काला है यह ऋजुसूत्रनयका विषय नहीं है किंतु काक काला नहीं है। यह ऋजुसूत्रनयका विषय है क्योंकि यहांपरं काक अपने काकस्वरूपका घारक है और कालापन अपने कालेपन स्वरूपका धारक है किंतु कालापन काकस्वरूप (काकका स्वरूप) नहीं । यदि यहांपर यह कहा जाय कि कालापन है है काकका स्वरूपही है तब कालापन तो भ्रमर आदिके अंदर भी दीख पडता है इसलिये भ्रमर आदिको * भी काक कहना पडेगा। फिर भ्रमर आदि जीवोंको काकके नामसे ही पुकारा जायगा-भ्रमर आदिके नामसे नहीं। यदि कदाचित् यह कहा जाय कि हम कालेपनको काकस्वरूप नहीं मानते किंतु काले , ही काकका नाम काक है अन्यवर्णका काक नहीं, यह कहते हैं। यह भी ठीक नहीं। यदि काले वर्णके काकको ही काक माना जायगा तो जों काक सफेद नीले आदि वर्णके धारक हैं उन्हें फिर काक न TRESCAREKARAORDIRSTRUCISHADRAKAISHES ROPUCHSGREECRETRACT
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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