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________________ साद अध्याय | मानी जा सकती इसलिए एकमात्र द्रव्य ही पदार्थ है रूप आदि पदार्थ नहीं 'यह सिद्धांतबाधित | भाषा है इस रीतिसे जो वादी एकमात्र द्रव्यहीको पदार्थ मानता है उसका वस्तुस्वरूपसे विपरीत मानना है। १० कोई वादी मानते हैं कि रूप आदि गुण ही पदार्थ हैं, द्रव्य नामका कोई भी संसारमें पदार्थ नहीं। || सो भी ठीक नहीं क्योंकि गुण पदार्थ किसी अन्य पदार्थके आश्रय रहता है यह नियम है । रूप आदि || ६ गुणोंका आधार द्रव्य माना है । यदि रूप आदिको ही पदार्थ माना जायगा और द्रव्य पदार्थ न माना || जायगा तो आधारके अभावमें रूप आदिका भी अभाव हो जायगा और भी यह बात है कि केवल || रूप आदि पदार्थों को ही मानने वाला वादी उन्हें आपसमें भिन्न भिन्न मानता है यदि उन सबका समु.॥ || दाय माना जायगा तो वह द्रव्य ही होगा क्योंकि समुदाय पदार्थ एक-द्रव्य पदार्थ से जुदा नहीं परंतु वे PII जुदे जुदे रूप आदि पदार्थ और समुदाय भी आपस में भिन्न भिन्न पदार्थ हैं इसलिए सबका ही अभाव | हो जायगा क्योंकि रूप आदिसे भिन्न समुदाय पदार्थ और समुदाय पदार्थसे भिन्न रूप आदि पदार्थ 5) कभी भी जुदे जुदे देखे सुने नहीं गए । इसलिए एकमात्र रूप आदि ही संसारमें पदार्थ हैं' यह बात | बाधित है इसरीतिसे जो वादी द्रव्यको पदार्थ न मानकर केवल रूप आदिको ही पदार्थ मानता है उसका | भी वस्तुस्वरूपसे विपरीत मानना है। . .. नैयायिक आदिवादी द्रव्य और रूप. आदि दोनों प्रकारके पदार्थोंका मानते हैं और उनका || सिद्धांत है.कि द्रव्य पदार्थ भिन्न है और रूप आदि पदार्थ भिन्न हैं उनका मानना भी ठीक नहीं क्योंकि रूप आदि गुणोंको द्रव्यका लक्षण माना है और लक्षण, लक्ष्यका स्वरूप होता है । यदि द्रव्य और रूप आदिको आपसमें सर्वथा भिन्न माना जायगा तो द्रव्य और रूप आदिका आपसमें लक्ष्य लक्षण BREACHESISESHISHN5IGURUERIES SACAREERACKERALASAHASABRIYA . -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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