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रहनेवाले मतिज्ञान श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान मिथ्याज्ञान कहे जाते हैं और जिस समय सम्यग्दर्शन प्रगट हो जाता है एवं मिथ्यादर्शनका अभाव हो जाता है उस समय मातिज्ञान आदि सम्यग्ज्ञान कहे |
जाते हैं इस रीतिसे सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शनके भेदसे मतिज्ञान आदि तीनों ज्ञानोंके इसप्रकार || दो दो भेद हो जाते हैं-मतिज्ञान मत्यज्ञान श्रुतज्ञान श्रुताज्ञान अवधिवान और विभंगज्ञान विशेष- ॥
मत्यादयः समाख्यातास्त एवेत्यवधारणात् ।
संगृहयेते कदाचिन्न मनःपर्ययकेवले ॥३॥ नियमेन तयोःसम्यग्भावनिर्णयतः सदा।
___ मिथ्यात्वकारणाभावादिशुद्धात्मनि संभवात् ॥ ४॥ दृष्टचारित्रमोहस्य क्षये वोपशमेऽपि वा।
मनःपर्ययविज्ञानं भवन्मिथ्या न युज्यते ॥५॥ सर्वघातिक्षयेऽत्यंत केवलं प्रभवत्कथं ।
मिथ्या संभाव्यते जातु विशुद्धिं परमां दधत् ॥६॥ मतिश्रुतावधिज्ञानत्रयं तु स्यात्कदाचन ।
मिथ्येति ते च निर्दिष्टा विपर्यय इहांगिनां ॥७॥ स च सामान्यतो मिथ्याज्ञानमत्रोपवयते।
संशयादि-विकल्पानां त्रयाणां संगृहीयते ॥८॥ समुचिनोति चस्तेषां सम्यक्त्वं व्यावहारिक। -
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