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पर्याय शब्द भी आपसमें सर्वथा भिन्न होने चाहिए । सो ठीक नहीं। गोपिंडसे गोत्व पदार्थ सर्वथा भिन्न नहीं कथंचित् भिन्न है, तो भी गोत्वं च गोपिंडश्च 'गोत्वगोपिंडौ' यह वहां पर इतरेतर योग द्वंद्र समास होता है उसीतरह पर्याय भी द्रव्यसे कथंचित् भिन्न है इसलिए वहांपर इतरेतर योग नामका द्वंद्व समास बाधित नहीं। इस प्रकार कथंचित् भेद पक्षमें भी इतरेतर योग द्वंद्व समास होता है तब उपर्युक्त र शंकाके आधार पर द्रव्य और पर्यायोंको सर्वथा भिन्न मानना निहतुक है।
नैयायिक और वैशेषिकोंने सामान्य और विशेष पदार्थों को सर्वथा भिन्न माना है इसलिए यदि 2 उनकी ओरसे यहां यह शंका हो कि गोत्व सामान्य और गोपिंड विशेष इन दोनोंका इतरेतर योग बंद , समास साध्यसम है अर्थात् सर्वथा आपस में भिन्न भिन्नोंका है इसलिए गोत्व और गोपिंडमें कथंचित । 9 भेद मान कर जो कचित् भेद पक्षमें इतरेतर योग द्वंद्वका संभव निर्दोष कहा है वह अयुक्त है ? सो ४
ठीक नहीं । सामान्य और विशेष दोनों पदार्थ आपसमें अभिन्न है यह पहिले कहा जा चुका है। इस
लिए उनको आपसमें सर्वथा भिन्न मानना बाधित है । इस रीतिसे कथंचित् भिन्न पदार्थों में भी जब इतहूँ रेतर योग द्वंद होता है तब द्रव्य पर्याय शब्दमें इतरेतर योग द्वंद मानना बाधित नहीं कहा जा सकता। है यदि यहांपर यह शंका की जाय कि
द्रव्यगृहणं पर्यायविशेषणं चेन्नानर्थक्यात् ॥ ७॥ द्रव्याज्ञानप्रसंगाच ॥८॥ 'द्रव्यपर्याय' शब्दमें 'द्रव्याणां पर्यायाः द्रव्यपर्याया' द्रव्योंकी पर्याय, यह षष्ठी तत्पुरुष समास कर द्रव्या पर्यायका विशेषण है ? सो ठीक नहीं । पर्याय सिवा द्रव्यके अन्य पदार्थके नहीं हो सकते। यदि द्रव्यको पर्यायका विशेषण माना जायेगा तो फिर पर्याय शब्दका उल्लेख ही उपयुक्त है, द्रव्य शब्द
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