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________________ अन्याय बाधित है तब बहु आदि विशिष्ट पदार्थोंको अवग्रह आदि जानते हैं यह अर्थ नहीं हो सकता अतः 'अर्थानां' यह सूत्रका पाठ होना चाहिये ? सो ठीक नहीं। जब बहु बहुविध आदि शब्दोंको और अर्थ 8 शब्दको आपसमें विशेष्य विशेषण रूप माना जायगा तब उपर्युक्त दोष हो सकता है । यहां सो तो छ माना नहीं गया किंतु अवग्रह आदि ज्ञान किसके होते हैं ? ऐसा प्रश्न होने पर वे पदार्थक होते हैं और । वह पदार्थ कोई बहुरूप होता है कोई बहुविध आदिरूप होता है इसरीतिसे 'अर्थ' शब्दका संबंध अव। ग्रह आदिके साथ है इसलिये यहां पर उपर्युक्त दोष नहीं लागू हो सकता । अथवा ___ सर्वस्य वार्यमाणत्वात् ॥९॥ अथवा संसारके समस्त पदार्थ अर्यमाण-जानने योग्य हैं इसलिये जातिकी अपेक्षा 'अर्थस्य यह अर्थ शब्दका षष्ठी विभक्तिके एक वचनका प्रयोग अयुक्त नहीं। अर्थात् पदार्थमात्र ही जानने योग्य है इसलिये समस्त पदार्थों में पदार्थत्व धर्म रहनेसे वे सभी पदार्थ ही कहे जाते हैं इसलिये एक वचन कहने है से सवोंका ग्रहण हो जाता है । अथवा प्रत्येकमभिसंबंधाद्वा॥१०॥ अथवा बहुत अर्थका अवग्रह होता है। बहुत प्रकारके अर्थका अवग्रह होता है। क्षिप्र पदार्थका अवग्रह 5 होता है इसप्रकार बहु आदि शन्दोंमें हरएकके साथ जुदा जुदा अर्थ शब्दका संबंध है। बहु आदि जुदै , जुदे सब एक एक ही हैं इसलिये प्रत्येक बहु आदि शब्दके साथ अर्थ शब्दका संबंध करने पर 'अर्थस्य' है यह षष्ठी विभक्तिके एक वचनका प्रयोग ही ठीक है ॥१७॥ जिन अवग्रह आदिका ऊपर वर्णन किया गया है वे अवग्रह आदि इंद्रिय और मनके विषयभूत समस्त पदार्थोंके होते हैं कि कुछ विशेष है ऐसी शंका उठाकर सूत्रकार विशेष बतलाते हैं Reskoe+***
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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