SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०रा० भाषा लेता है इसलिये उसप्रकारका ग्रहण करना उसका अनिःसृत पदार्थका अवग्रह कहा जाता है और उक्त कारणोंकी मंदतासे जिससमय आत्मा सामने निकाल कर रक्खे हुए पंचरंगे वस्त्र के पांचों रंगोंको ग्रहण अध्याय d करता है उससमय उसके निःसृत पदार्थका अवग्रह होता है। . चक्षु इंद्रियावरण और वीयांतराय कर्मके क्षयोपशमसे एवं अंगोपांग नामके नामकर्मके बलसे जिस समय आत्मा सफेद काला वा सफेद पीला आदि रंगोंको आपसमें मिलाते हुए किसी पुरुषको देखकर 8. आप इन दो प्रकारके रंगोंको मिलाकर अमुक रंगको तयार करनेवाले हैं, इसप्रकार विना कहे ही जाना लेता है उस समय उसके अनुक्त पदार्थका अवग्रह होता है अथवा दूसरे देशके वने हुये किसी पंचरंगे है हूँ पदार्थके कहते समय, कहनेवाला पुरुष कहनेका प्रयत्न ही कर रहा है उसके पहिले ही विना कहे उस वस्तुके पांचों रंगोंको जान लेता है उसके भी उस समय अनुक्त पदार्थका अवग्रह होता है और उक्त के कारणोंकी मंदता रहनेपर कंबल आदि पंचरंगे पदार्थके कहनेपर जब पांचों रंगोंको जानता है तब उस के उक्त पदार्थका अवग्रह होता है। संक्लेश परिणामोंसे रहित और यथायोग्य चक्षुरिंद्रियावरण आदि कर्मोंके क्षयोपशम परिणामरूप 18 कारणोंका धारक आत्मा जैसा पहिले ही पहिले रूप ग्रहण करता है उसीप्रकार निश्चलरूपसे और भी कुछ काल वैसा ही उसके रूपका ग्रहण बना रहता है कुछ भी कम बढती नहीं होता उस समय उसके ध्रुव पदार्थका अवगृह होता है और बार बार होनेवाले संक्लेश परिणाम और विशुद्धि परिणामरूप कारणोंसे युक्त आत्माके जिस समय चक्षु इंद्रिय आदि कर्मों का कुछ कुछ आवरण भी होता रहता है और क्षयोपशम भी होता रहता है इस तरह चक्षु इंद्रियावरण आदि कर्मोंके क्षयोपशमकी कुछ उत्कृष्ट PARBACHECREATRESCRECEREMIERRECOREGIE SIRSISTABASSACREASE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy