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________________ हूँ है उसकसी पदार्थ विशेषकाशानमें अवग्रहकेकछ विशेष निगडगा ? सो ठीक नहीं ईहाज्ञानमें निर्णय न होने के कारण उसे संशय ज्ञान मानना ही पडेगा ? सो ठीक नहीं। जिस पदार्थको अवग्रहज्ञानने विषय किया है उसी पदार्थके कुछ विशेष निश्चयकेलिए ईहाज्ञानका आलंबन किया है २९० हूँ जाता है इसलिए जब ईहाज्ञानमें अवग्रहके विषयभूत पदार्थसे विशेष पदार्थका आलंबन है और संश-हूँ यमें किसी पदार्थ विशेषका आलंबन माना नहीं गया तथा ईहाज्ञान जिस पदार्थ विशेषका आलंबन है है है उसका उससे निश्चय होता है और संशयज्ञानसे किसी पदार्थका निश्चय होता नहीं तव ईहाज्ञानको 2 कभी संशयज्ञान नहीं ठहराया जासकता। और भी यह बात है कि __ संशयपूर्वकत्वाच्च ॥ १२॥ 'यह पुरुष हैं' इस अवग्रहज्ञानके बाद पहिले 'यह पुरुष दक्षिणी है वा उचरी है' यह संशय होता र है और वहांपर किसी भी पदार्थका निश्चय नहीं होता इसलिए वह संशयज्ञान कहाजाता है किंतु उसके 18/ हूँ| बाद विशेष जाननेकी अभिलाषासे ईहाज्ञानका आश्रय किया जाता है इसरीतिसे पहिले संशयज्ञान है और पीछे ईहा इसरूपसे ईहा और संशयज्ञानका जब कालभेद है तब संशयसे भिन्न ही इंहाज्ञान है-दोनों एक नहीं। अर्थात् संशयज्ञानके दूर करनेके लिए ही ईहाज्ञान होता है इसलिए वह संशयका निवारक है न कि संशयरूप । तथा अतएव संशयावचनमर्थगृहीतेः॥१३॥ अवग्रह ईहा आदि ज्ञानों में पदार्थका आलंबन है। संशयज्ञानमें किसी पदार्थका अवलंबन नहीं छ इसलिए यद्यपि अवग्रहके बाद संशयज्ञान और उसके बाद ईहा आदि ज्ञान इसरूपसे ज्ञानोंके होनेका क्रम 5 है। है तो भी पदार्थ विशेषका आलंबन न रहने के कारण 'अवग्रहेहावायधारणाः' इस सूत्रमें अवग्रहके ASHOGALLECRUCIENCETREEKRECEMBE अध्याय RAORDINARIAGROORDARS शेषका आलंबन न रहने के काके बाद ईहा आदि ज्ञान इसरूपसका अवलंबन नहीं है
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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