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________________ ६ विशेष रूपसे जाननेकी आकांक्षा होना ईहा ज्ञान है। अर्थात् 'यह पुरुष है' यह अवग्रह ज्ञानका विषय है। है उसकी बोल चाल उम्र और रूप आदि देखकर यह दक्षिणी है वा उचरी है इस संशयके वाद दक्षिणी २९५, होना चाहिये ऐसा जो एक ओर झुकता हुआ ज्ञान होता है वह ईहा ज्ञान कहा जाता है। विशेषनिर्ज्ञानाद्याथात्म्यावगमनमवायः॥३॥ बोल चाल, उम्र आदि विशेषोंको जानकर उसका यथार्थ जानना अवायज्ञान है जिसतरह इस पुरुषकी भाषा दक्षिणी है इसलिये यह दक्षिणी है, युवा और गौरवर्णका है। निर्शातार्थाऽविस्मृतिर्धारणा ॥४॥ बोल चाल, उम्र, रूप आदि विशेषों द्वारा जिस पुरुषका यथार्थरूपसे निश्चय हो चुका है कालांतर 5 में उसे भूल जाना नहीं किंतु यह वही हैं' ऐसे स्मरणका बना रहना जिस ज्ञानके द्वारा हो वह धारणा | * ज्ञान है इसप्रकार ये अवग्रह आदि चारों भेद मतिज्ञान के हैं । अवग्रहके वाद ईहा, ईहाके वाद अवायड्र .६ यह जो क्रमसे अवग्रह आदिका सूत्र में उल्लेख किया गया है वह क्यों और कैसे हैं? यह बात वार्तिक RISTIRECatestKkKrafteresticosto कार कहते हैं .अवगृहादीनामानुपूर्व्यमुत्पत्तिकियानपेक्षं ॥५॥ ईहादिक ज्ञान विना अवग्रहके नहीं हो सकते किंतु अवग्रहपूर्वक ही होते हैं इसलिये अवग्रह है आदि चारों भेदोंमें सबसे पहिले अवग्रहका उल्लेख है । अवाय और धारणा ईहापूर्वक होते हैं इसलिये है। अवग्रहके वाद ईहाका कथन है । धारणा ज्ञान अवायपूर्वक होता है इसलिये ईहाके वाद अवायका PRASTOTROPERTRENDRA ASTRA .
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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