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________________ अध्याय तरा. भाषा २८३ 9ARSHREGUAGECORREARSA दत्त इसप्रकारके शब्द ! भावार्थ-गाय घोडा आदि प्रकारके शब्द जातिवाचक, श्वेत नील प्रकारके गुण-18 वाचक, चरना कूदना आदि प्रकारके क्रियावाचक और देवदत्त जिनदच आदिप्रकारके संज्ञावाचक होते हैं। यहाँपर इति शब्दका अर्थ प्रकार है। 'ज्वलितिकसंताण्ण' ज्वलसे लेकर कस पर्यंत धातुओंसे ण | प्रत्यय होता है यहांपर इतिशब्दका अर्थ व्यवस्था है क्योंकि इहां इतिशब्दस ज्वल और कस धातुओंके। | बीचमें गिनी गई बल आदि अनेक धातुओंकी व्यवस्था की गई है । 'गौरित्ययमाह' यह गौ कहता है | PI यहांपर इति शब्दका अर्थ विपर्यास है क्योंकि यहांपर 'जो गौ नहीं है उसे गौ कहता है। इस विपरीत [2 अर्थको इतिशब्दसे सूचित किया है। 'प्रथमाह्निकामिति, द्वितीयाहिकमिति' प्रथमाहिक समाप्त हुआ, द्वितीयाह्निक समाप्त हुआ, यहां पर इति शब्दका अर्थ समाधि है । श्रीदचामिति, सिद्धसेनमिति, यह श्रीदचका कहना है, यह सिद्धसेनका कहना है यहां पर इति शब्दका शब्दोंका उत्पन्न करना वा हूँ कहना अर्थ है । इत्यादि अनेक इति शब्दके अर्थ हैं परन्तु सूत्रमें जो इति शब्द है उसका आदि अर्थ विवक्षित है इसलिये उसका आदि अर्थ समझना चाहिये । अर्थात् मति स्मृति संज्ञा चिंता और अभिनि बोध आदि सबका एक ही अर्थ है भिन्न नहीं। यहांपर जो इतिशब्दका आदि अर्थ किया गया है उससे है प्रतिभा बुद्धि उपलब्धि आदिका ग्रहण है । वे भी अनांतर ही हैं। अथवा इतिशब्दका यहां प्रकार अर्थ | है अर्थात् मति आदिकी तरहके शब्द एक ही अर्थक बोधक हैं। मति आदिको एक ही अर्थका बोधकः | पना इसप्रकार है ___ मतिज्ञानावरणक्षयोपशमनिमित्तार्थोपलब्धिविषयत्वादनांतरत्वं रूढिवशात् ॥ २॥ मति आदिसे जो पदार्थों का ज्ञान होता है उसमें मतिज्ञानावरण कर्भका क्षयोपशम समानरूपसे कारण पडता RECRUKHABARONCREAKESAUR २८३
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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