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________________ Y अध्याय तरा भाषा २७३ 'कल्पनासे रहित यह विकल्प है जाति आदिका विकल्प नहीं है' यह वात नहीं बन सकती इसलिये समस्त विकल्पों के अभावसे विज्ञान पदार्थ ही सिद्ध नहीं होता। और भी यह वात है कि बौद्ध लोग सब पदार्थोंको क्षणिक मानते हैं परंतु उन्होंने अनुस्मरण आदि धर्मोंको स्वीकार किया | | है। वे अनुस्मरण आदि पदार्थ अनेक क्षण ठहरनेवाले हैं इसलिये अनुस्मरण आदिके स्वीकार करनेसे || उन्हींके मतानुसार एक पदार्थ अनेक क्षणस्थायी सिद्ध हो गया जो कि उनके माने हुए क्षणिक सिद्धांत || || पर आघात पहुंचाता है। यहां पर यह वात भी निश्चित समझ लेना चाहिये कि जो पदार्थ पहिले कभी | * अनुभवमें नहीं आये हैं अथवा अन्यके अनुभवमें आये हैं उन पदार्थोंका अनुस्मरण आदि नहीं होता ६ किंतु एक ही आत्मामें जिसका पहिले अच्छी तरह अनुभव हो चुका है उसीके अनुस्मरण आदि होते हैं इसलिये अनुस्मरण आदिको एक क्षणस्थायी नहीं कहा जा सकता किंतु वे अनेक क्षणस्थायी ही हैं। तथा मानस प्रत्यक्षका अंगीकार भी बौद्धोंके क्षणिक सिद्धांतको सिद्ध नहीं होने देता क्योंकि 'षण्णामनं-12 तरातीत विज्ञानं यद्धि तन्मनः' छै पदार्थों के अनंतर जो अतीत विज्ञान है वह मन कहा जाता है, यहां पर मनको विज्ञानका कारण बतलाया है। यदि किसी भी पदार्थको अनेक क्षण ठहरनेवाला न माना। जायगा तब मन भी अनेक क्षणस्थायी न ठहरेगा फिर क्षणभरमें ही नष्ट हो जानेवाला असत्पदार्थ और | अतीत मन विज्ञानका कारण नहीं हो सकेगा इसलिये यदि बौद्ध मानस प्रत्यक्षको स्वीकार करते हैं तो | उन्हें मनको अनेक क्षणस्थायी मानना ही होगा इस रीतिसे उनका क्षणिक सिद्धांत कभी सिद्ध नहीं हो | सकता। यदि कदाचित् कार्य कारणकी सिद्धि के लिये यह कहा जाय कि ___ हम पूर्व पदार्थका नाश और उत्तर पदार्थकी उत्पचि एक साथ मानते हैं इसलिये कार्य कारण BAREISABGREECEBOOLOGINEERINCREGARLSCREENER ३५
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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