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अध्याय
पदार्थोंको जान लेता है-पदार्थोंके जाननेमें उसे इंद्रिय आदि किसी भी पदार्थकी अपेक्षा नहीं करनी पडती । शंकाइंद्रियनिमित्तं ज्ञानं प्रत्यक्षं तद्विपरीतं परोक्षमित्यविसंवादि लक्षणमिति
चेन्नाप्तस्य प्रत्यक्षाभावप्रसंगात् ॥६॥ जो ज्ञान इंद्रियोंके व्यापारसे उत्पन्न हो वह प्रत्यक्ष और जिसमें इंद्रिय व्यापारकी अपेक्षा न हो । । वह परोक्ष है यही प्रत्यक्ष और परोक्षका विसंवादरहित निर्दोष लक्षण है । अन्य सिद्धांतकार भी ऐसा " ही प्रत्यक्षका लक्षण मानते हैं । जिसतरह बौद्धोंका कहना है कि
प्रत्यक्ष कल्पनापोटं नामजात्यादियोजना । असाधारणहेतुत्वादःस्तद् व्यपदिश्यते ॥१॥ जिसमें नाम जाति आदिकी योजना किसी प्रकारकी कल्पनासे रहित हो वह प्रत्यक्ष है और उसकी उत्पत्तिमें असाधारण कारण इंद्रियां हैं इसलिये इंद्रियों से उसका व्यवहार होता है इसरीतिसे बौद्ध हूँ सिद्धांतमें प्रत्यक्षकी उत्पत्ति वा उसका व्यवहार इंद्रियोंके आधीन माना है । नैयायिकोंका मानना है कि- है "इंद्रियार्थसन्निकर्षोत्पन्नं ज्ञानमव्यपदेश्यमव्यभिचारि व्यवसायात्मकं प्रत्यक्षं ।” अर्थात् जो ज्ञान इंद्रिय ।
और पदार्थके संबंधसे उप्तन्न हो, अव्यपदेश्य अर्थात् पहिले किसके द्वारा कहा न गया हो, अव्यभिचारिसंशय आदि व्यभिचारी ज्ञानोंसे रहित हो और व्यवसायात्मक निश्चय करानेवाला हो वह प्रत्यक्ष है। यहांपर भी प्रत्यक्षज्ञानमें इंद्रियोंकी अपेक्षा बतलाई गई है। वैशेषिकोंका कहना है कि "आत्मेंद्रिय ६
5 २६४ १म्पायवार्तिक सत्र ४ पृ.३०।२ वैशेषिक दर्शन'पा ३ मा १ सूत्र १८'पृ० १४४ । ।
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