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अध्याय
|| ज्ञान होना चाहिये परन्तु सो नहीं होता वहां तो केवल सुगंधिका ही सामान्यरूपते ज्ञान होता है इस|६|| लिये सन्निकर्षको प्रमाण नहीं माना जा सकता। और भी यह वात है कि
तत्फलस्य साधारणत्वपूसंगःस्त्रीपुरुषसंयोगवत् ॥२०॥ | स्त्री और पुरुषका जब आपसमें संयोग होता है तब उस संयोगसे होनेवाला सुख दोनोंको प्राप्त होता है एकको नहीं, उसीतरह यदि सन्निकर्षको प्रमाण माना जायगा तो आत्मा मन इंद्रिय और पदार्थ के संयोगका नाम सन्निकर्ष माना है वहां जिसतरह ‘पदार्थों का ज्ञान' रूप फल आत्माको प्राप्त होता है। | उसीतरह साधारणरूपसे इंद्रिय मन और पदार्थको भी होना चाहिये-आत्माके समान पदार्थों का ज्ञान' || ॥ इंद्रिय आदिको भी होना चाहिये परन्तु यह वात दीख नहीं पडती-पदार्थों का ज्ञान सिवाय आत्माके | इंद्रिय आदिको नहीं होता इसलिये सन्निकर्षको प्रमाण नहीं कहा जा सकता। यदि यहांपर यह समा-|| घान दिया जाय कि
शय्यावदिति चेन्नाचेतनत्वात् ॥२१॥ पलंग और पुरुषका संयोग दोनों में समानरूपसे है तो भी उस संयोगसे होनेवाले सुखको पुरुष ही 15 अनुभव करता है, पलंग नहीं उसीप्रकार यद्यपि आत्मा मन इंद्रिय और पदार्थके संयोगका नाम सन्निकर्ष है तो भी पदार्थों का ज्ञान रूप जो सन्निकर्षका फल बतलाया है उसका अनुभव करनेवाला आत्मा | ही है इंद्रिय आदि नहीं हो सकते ? सो भी ठीक नहीं । पलंग पदार्थ अचेतन है अचेतनमें सुख भोगने | |
की योग्यता नहीं हो सकती इसलिये भले ही पलंग और पुरुषका संयोग हो तथापि उस संयोगसे होने || वाले सुखका अनुभव करनेवाला चेतन पुरुष ही होगा, अचेतन पलंग नहीं हो सकता। फिर भी कदा- २५३
चित् यह कहा जाय कि
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