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________________ परंतु वह ठीक नहीं। जिस पदार्थका जो लक्षण किया जाता है वह असाधारण होता है। अपने लक्ष्य को छोड कर अलक्ष्यमें नहीं जाता परंतु यह जो श्रुतज्ञानका लक्षण किया गया है वह लक्ष्य श्रुतज्ञान को छोड कर अलक्ष्य मतिज्ञानमें भी चला जाता है क्योंकि शब्दको सुनकर यह गो शब्द है ऐसा ज्ञान है इंद्रिय और मनकी सहायतासे उत्पन्न होनेके कारण मतिज्ञान कहा जाता है परंतु श्रुतज्ञान श्रोत्र इंद्रिय के व्यापारकी कोई अपेक्षा नहीं करता क्योंकि जो शब्द अनेक पर्यायोंका समूह स्वरूप है वह चाई इंद्रिय और मनके द्वारा ग्रहण किया गया हो वा न ग्रहण किया गया हो श्रुतज्ञान उसे जानता है एवं उस शब्दका जो वाच्य अर्थ है उसे भी श्रुतज्ञान जानता है । अर्थात् खुलासा इसका अर्थ यह है कि गो शब्दकी बहुतसी पर्याय हैं । शब्दको सुन कर 'यह गो शब्द है' यह तो मतिज्ञानका विषय है उसके 8 बाद-पीली गौको कहनेवाला गो शब्द, काली गौको कहनेवाला गो शब्द, नीली गौका कहनेवाला गो , शब्द आदि जो इंद्रिय और मनके द्वारा ग्रहण की हुई वा न ग्रहण की हुई गोशब्दकी अनेक पर्याय हैं हूँ उन्हें श्रोत्र इंद्रियको सहायताके विना श्रुतज्ञान जानता है एवं गो शब्दका वाच्य जो गाय अर्थ है उसे हूँ भी श्रुतज्ञान जानता है इसरीतिसे जब श्रोत्र इंद्रियकी अपेक्षा विना किये भी श्रुतज्ञान नयादि ज्ञानोंके है द्वारा अपने विषयको जानता है तब सुनकर जिसके द्वारा निश्चय किया जाय वह श्रुतज्ञान है यह है श्रुतज्ञानका लक्षण नहीं हो सकता ॥९॥ नय और प्रमाणके द्वारा जीव आदि पदार्थों का वास्तविकरूपसे जान लेना 'प्रमाणनयधिगम है इस सूत्रका अर्थ है वह ऊपर कह दिया जा चुका है वहां पर कोई तो ज्ञानको प्रमाण मानते हैं किन्हींके PRORISTIBRITISANSAROKARISTOTRETOISTRNORNSTISTAN Marat.
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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