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KISAATHIAGO GALICHOPO
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| श्रुतज्ञानकी अपेक्षा विशेष निर्मलतालीये वह पदार्थों को जानता है इसलिये मति और श्रुतज्ञानसे बरा पहिले अवधिज्ञानका पाठ रखना न्यायप्राप्त है तथापि अवधिज्ञान मनःपर्यय ज्ञान और केवलज्ञानके २३ भेदसे जो तीन प्रकारका प्रत्यक्ष माना है उनमें सबसे पहिले अवधिज्ञानका उल्लेख है एवं मनःपर्यय और P केवल ज्ञानके समान अवधिज्ञानमें विशुद्धता नहीं है इसलिये श्रुतके बाद और तीनों प्रत्यक्षोंमें सबकी आदिमें कहे जाने वाले अवधिज्ञानका, मनःपर्ययके पहिले पाठ रक्खा है।।
ततो विशुद्धतरत्वान्मनःपर्ययग्रहणं ॥२२॥ __ अवधिज्ञानकी अपेक्षा मनःपर्ययज्ञान अधिक विशुद्ध है क्योंकि अवधिज्ञान तो देव आदि गतियोंमें 15 | विना संयम तप आदिके भी हो जाता है परंतु मनःपर्ययज्ञान मनुष्य गतिके सिवाय दूसरी गतिमें नहीं है| होता और संयमके द्वारा ही होता है इसलिये संयम गुणकी अपेक्षा अवधिज्ञानसे मनःपर्यय ज्ञानमें टू हा विशेष निर्मलता होने के कारण अवधिज्ञानके बाद क्रमप्राप्त मनःपर्ययका पाठ रक्खा है।
अंते केवलगृहणं ततः परं ज्ञानप्रकर्षाभावात् ॥ २३ ॥ मतिज्ञान आदि समस्त ज्ञान केवलज्ञानमें ही समा जाते हैं। मतिज्ञान आदिका जो भी विषय है उस | || सबको केवलज्ञान जानता है किंतु केवल ज्ञानका जो विषय है वह किसी ज्ञानका विषय नहीं हो सकता ||६||
केवलज्ञानका ही विषय हो सकता है क्योंकि इससे बढकर अन्य कोई ज्ञान नहिं इसलिये मतिश्रुतावधी- | त्यादि सूत्रमें मनापर्ययके बाद सब ज्ञानोंके अंतमें केवलका पाठ रक्खा है। और भी यह बात है कि
१ मतिज्ञान आदि चारों ज्ञान क्षयोपशमरूप हैं परंतु केवलज्ञान क्षायिकरूप है इसलिये जहां क्षायिकवान-केवलज्ञान प्रगट हो जाता है वहां मानका पूर्ण विकाश हो जाता है उस अवस्थामें क्षयोपशम ज्ञानकी स्वतंत्र सचा नहीं रहती।
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