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भाषा
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क आधीन है । यदि वह षष्ठी कारककी जगह सप्तमी कारक कहना चाहे तो कह सकता है जब यह है बात है तब स्वामिसबंधके योग्य और अधिकरणमें कोई विरोध नहीं हो सकता इसलिये स्वस्वामिसं-2 बंधके योग्यको ही अधिकरण मानना बाधित नहीं। ... जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे स्थिति दो प्रकारकी है और बंधकी स्थिति ज्ञानावरण आदि सब कोंकी स्थितिका ग्रहण किया गया है । इसलिये वेदनीयकी जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है अर्थात् जघन्यसे जघन्य वारह मुहूर्त तक वेदनीयकर्मका बंध आत्माके साथ रहता है। नाम और गोत्रकर्मोंकी स्थिति आठ मुहूर्त है । अवशिष्ट ज्ञानावरण आदि कर्मोकी जघन्यस्थिति अंतर्मुहूर्त मात्र है। तथा ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय और अंतराय इन चार कर्मोंकी उत्कृष्टस्थिति तीस कोडाकोडि सागरप्रमाण
है। मोहनीयकी सत्तर कोडाकोडि सागरप्रमाण है । नाम और गोत्र कर्मों की बीस कोडाकोडि सागरर प्रमाण है और आयुकर्मकी तेतीस सागर प्रमाण है अर्थात् अधिकसे अधिक इतने काल तक ज्ञानावरण ॐ आदि कर्मों का आत्माके साथ बंध रहता है। 9. अथवा-बंध संतान सामान्यरूपसे बंधकी विवक्षा करने पर अभव्योंकी अपेक्षा बंधकी स्थिति है % अनादि और अनंत है तथा जो भव्य अनंतकालमें भी मोक्ष न प्राप्त कर सकेंगे उनके भी. बंधकी स्थिति हूँ संतानकी अपेक्षा अनादि अनंत है किंतु ज्ञानावरण दर्शनावरणकी उत्पचि और विनाशकी अपेक्षा वइ ई हुँ बंधस्थिति सादि और सांत है। क्योंकि ज्ञानावरण आदिकी जितनी स्थिति पडेगी उतने काल रहनेके है के बाद वह.छूट जायगी इसलिए वह अनादि अनंत नहीं कही जा सकती। यह सादि सांत स्थिति प्रत्येक
कर्मकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिके भेदसे ऊपर कह दी गई है। सामान्यकी अपेक्षा बंधद्रव्य एक ही
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