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________________ B ISALALASAHARSAREERSIORIERSPEc एक ही हेतुमें होना विरुद्ध नहीं माना जाता 'उसीतरह अस्तित्व नास्तित्व आदि विरुद्ध भी धर्मोंका स्वरूप और पररूपकी अपेक्षा एक ही घट आदि किसी पदार्थमें होना भी विरुद्ध नहीं माना जासकता। इसप्रकार समस्त पदार्थोंमें व्यापक यह अनेकांत प्रक्रिया समस्त पदार्थों के विरोध दोषका खंड खंड कर डालती है । तथा सर्वप्रवाधविप्रतिपत्तेव ॥१४॥ तथातत्त्व कथंचित् एक स्वरूप भी है कथंचित् अनेकस्वरूप भी है इस सिद्धांतके माननेमें किसी हैं भी प्रतिवादीको विवाद नहीं सब प्रतिवादी इस बातको स्वीकार करते हैं। जिसतरह-सांख्यसिद्धांतकार हैं * यह मानते हैं-सत्वगुण रजोगुण और तमोगुण इन तीनोंकी जो साम्यावस्था है वह प्रधानतत्त्व है। वहां पर प्रसन्नता और लाघव सत्वगुणका स्वभाव है । शोष और ताप रजोगुणका स्वभाव है,आवरण (ढंक है देना) और आसादन तमका स्वभाव है। यद्यपि प्रसन्नता शोष आवरण आदि पदार्थ परस्पर विरुद्ध ५ हैं तो भी उन्हें प्रधान स्वरूप माननेमें किसीप्रकारका विरोध नहीं माना गया। यदि यहांपर यह कहा 5 ५ जाय कि सत्वगुण रजोगुण तमोगुणसे भिन्न कोई भी प्रधान नामका एक पदार्थ संसारमें नहीं किंतु वे हूँ ही सत्वगुण रजोगुण और तमोगुण जिससमय साम्य अवस्था धारण करलेते हैं उन्हींका नाम प्रधान है पड जाता है तो फिर बहुतसे प्रधान मानने पडेंगे क्योंकि सत्व आदि अवयवोंका नाम प्रधान माना गया है सत्व आदि अवयव अनेक हैं इसलिये प्रधान भी अनेक हो जायगे। यदि उन सबका समुदाय है ही एक प्रधान तत्व है तब अवयवस्वरूप सत्व आदि गुण और समुदायस्वरूप प्रधान दोनोंके माननेमें किसीप्रकारका विरोध नहीं इसरीतिसे सत्व रज आदि विरुद्ध भी गुणोंका आधार भी प्रधान पदार्थ BSPEAKERALACHIEFECHESTRI
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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