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रा०
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करना तो छल जान पडता है । छलसे कभी यथार्थ वस्तुकी सिद्धि नहीं हो सकती इसलिये अनेकांत वादसे वस्तुका निर्णय यथार्थ होता है यह कहना अयुक्त है ? सो ठीक नहीं । 'वचनविघातोऽर्थविकल्पो पपत्त्या छल' अर्थात् जिस अर्थके लिये शब्दका प्रयोग किया गया है उसमें विकल्प उठाकर दूसरा अर्थ कर जो वचनको काट देना है वह छल कहा जाता है जिस तरह किसी नवीन कंबलको ओढनेवाले पुरुषको देखकर किसीने यह सामान्यरूपसे कह दिया कि 'नवकंबलोऽयं' अर्थात् यह पुरुष नवीन कंबल धारण करनेवाला है वहां पर वक्ताका यही आशय था कि यह नूतन कंबलका धारण करनेवाला है परंतु पास में खडे किसी मनुष्यने उसका अभिप्राय काट कर यह अभिप्राय सूचित कर डाला कि इसके पास नौ कंबल हैं चार वा तीन नहीं हैं । अथवा किसीके पास नौ कंबल देख किसीने यह कह दिया कि 'नव' कंबलोऽयं' अर्थात् इसके पास नौ कंबल हैं उस समय पासमें रहनेवाले पुरुषने उसका वह वचन काट यह अभिप्राय सूचित कर डाला कि इसके पास नूतन कंबल है पुराना नहीं है । परन्तु अनेकांत वादमें ऐसा छलका समावेश नहीं क्योंकि वहांपर जो वचन कहा जो चुका है उसे काटकर दूसरा अभिप्राय नहीं निकाला जाता किंतु जिस रूपसे जिस वचनका प्रयोग किया गया है उसका उसी रूपसे प्रयोग माना जाता है जिस तरह जो घट द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा नित्य कहा जा सकता है वह द्रव्यार्थिक tant अपेक्षा नित्य ही माना जाता है, अनित्य नहीं, एवं जो घट पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा अनित्य कहा गया है वह पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा अनित्यं ही माना जाता है नित्य नहीं । इसलिये अनेकांत वाद का लक्षण नहीं घट सकता। हां! जो घट द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा नित्य माना गया है। १ अभिप्रायांतरेय प्रयुक्तस्य शब्दस्यार्थीवर परिकल्प्य दूषणाभिधानं छलं । सप्तभंगी तरंगिणी पृ० ७६ ॥