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माया
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अर्थात् द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा नाम स्थापना और द्रव्यका कथन है क्योंकि ये तीनों ही निक्षेप व०० द्रव्यको विषय करते हैं और भाव निक्षेप पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षा कहा गया है क्योंकि वह वर्तमान |
काल संबंधी द्रव्यकी पर्यायको ही विषय करता है इसप्रकार इन चारो निक्षेपोंसे जीवादि पदार्थोंका | व्यवहार होता है। शंका
द्रव्यस्यादौ वचनं न्याय्यं तत्पूर्वकत्वान्नामादीनां ॥१४॥ ' ' ' ' द्रव्यके रहते ही नाम और स्थापना हो सकते हैं जब द्रव्य ही कोई पदार्थ न रहेगा तब किसका | तो नाम रक्खा जायगा और किसकी किसमें स्थापना होगी। इसरीतिसे नाम और स्थापनाका कारण हा द्रव्य पदार्थ होनेसे नामस्थापना इत्यादि सूत्रमें उसका सबसे पहिले पाठ रखना चाहिये । नामका सबसे । पहिले पाठ रखना अयुक्त है ? सो ठीक नहीं।
. संव्यवहारहेतुत्वात्संज्ञायाः पूर्ववचनं ॥१५॥ लोकका समस्त व्यवहार नामपूर्वक होनेसे नामस्वरूप है' यदि पदार्थों का नाम न होगा तब यह घडा है यह कपडा है इत्यादि व्यवहार ही सिद्ध न हो सकेगा किंतु पदार्थों के व्यवहारका सर्वथा उच्छेद हो जायगा। तथा लोकके व्यवहारके नामपूर्वक होनेके कारण यदि कोई स्तुति करता है तो राग-प्रीति और निंदा करता है तो द्वेष होता है। यदि लोकमें स्तुति और निंदाका व्यवहार ही न होगा तो राग द्वेष भी न हो सकेगा इसरीतिसे लोकके समस्त व्यवहारकी सचा जब नाम निक्षेप पर ही निर्भर है तब | वही प्रधान हुआ इसलिये सबसे पहिले जो उसका पाठ रक्खा है वह युक्त है।
ततः स्थापनावचनमाहितनामकस्य स्थापनोपपत्तेः ॥ १६ ॥
BHARASHRSHASHARABARSHABHASHA
ANASACARREARRINA