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और उसका अर्थ निक्षेप है । जीव अजीव आदि पदार्थोंका वा सम्यग्दर्शन आदिका निक्षेप तन्न्यास कहा जाता है । इस रीति से नाम स्थापना द्रव्य और भावोंके द्वारा जीव आदि पदार्थ वा सम्यग्दर्शन आदिका व्यवहार होता है यह सूत्रका स्पष्ट अर्थ है । अब इन नाम आदिका लक्षण निरूपण किया जाता है
निमित्तांतरानपेक्षं संज्ञाकर्म नाम ॥ १ ॥
जाति गुणक्रिया आदि किसी भी निमित्तकी अपेक्षा न कर जो किसीका नाम रख दिया जाता है वह नाम निक्षेप है । जिसतरह जो परमैश्वर्यको भोगता है वह इंद्र कहा जाता है यह इन्द्र शब्दका प्रसिद्ध अर्थ है किंतु जहांपर परमैश्वर्यकी कोई पर्वाय न कर किसी दरिद्रका नाम इन्द्र रख दिया जाता है और इन्द्र नामके पुकारते ही वह सामने आकर खडा होजाता है इसलिये उसका उस प्रकारका इंद्र नाम रखना नामनिक्षेप कहा जाता है उसीतरह जहां जीवन पर्यायका सम्बंध है वहां जीव और जहां श्रद्धान क्रियाका संबंध है वहां सम्यग्दर्शन यथार्थरूपसे कहा जाता है किंतु जहाँपर जीवन पर्यायका कोई संबंध नहीं वहां पर जिस किसीका नाम जीव रख दिया जाता है वह और जहाँपर श्रद्धान क्रिया का कोई सम्बंध नहीं वहां पर जिस किसीका नाम श्रद्धान रख दिया जाता है वह नामनिक्षेप है- केवल व्यवहार के लिये उसका जीव और सम्यग्दर्शन नाम है ।
१ या निमित्तांतरं किंचिदनपेक्ष्य विधीयते । द्रव्यस्य कस्यचित् संज्ञा तन्नाम परकीर्तितं । १० । अध्याय १, तस्यार्थसार । नामके अनुसार उसमें गुणोंके नहीं रहनेपर केवल उस नापसे उसे व्यवहार में लाया जाय इसी उद्देश्यसे किसीका कुछ भी नाम रख देना नामनिक्षेप है।
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भाष
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