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मध्याव
SCRECRSALCHAUTARIES
से प्रायसे प्रयोग किये गये शब्दका अपनी कल्पनासे दूसरा अर्थ कर दूषणका कथन करदेना छल कहलाता है ॐ है, यह सामान्यरूपसे छलका लक्षण है। जिसतरह नव शब्दको नूतन अर्थक अभिप्रायसे किसीने कहा * 'नवकंबलोऽयं देवदचः' अर्थात् इस देवदचके पास नवीन कंबल है, वहीं पासमें खडे किसी अन्य पुरुषने 3 ६ नव शब्दका नवीन अर्थ न कर नौ संख्या अर्थ मानकर एवं उपर्युक्त अर्थको दूषित कर यह कहा-अरे 81
भाई ! यह देवदत्त अत्यन्त गरीब है इसके नौ कंबल नहीं, इसके तो दो भी कंबल नहीं, नौ कहांसे आये! | परंतु अनेकांतवादमें इसप्रकारके छलके लक्षणका प्रसंग नहीं क्योंकि वहांपर अन्य अभिप्रायसे प्रयोग किये गये शब्दके दूसरे अर्थकी कल्पना नहीं है। किंतु अस्तित्व आदि जिस रूपसे प्रतिपादन किये गये हैं उनका उसी रूपसे प्रतिपादन है इसलिये अनेकांतवादमें छल दोषका संभव नहीं हो सकता। बहुतसे मनुष्य अनेकांतवादको संशयका कारण बतलाते हैं उनका कहना इसप्रकार है
एक ही वस्तुमें अस्तित्व नास्तित्व आदि विरुद्ध नाना धौंका संभव होनेसे अनेकांतवाद संशयका कारण है क्योंकि-"एकवस्तुविशेष्यकविरुद्धनानाधर्मप्रकारकज्ञानं हि संशयः' अर्थात् विशेष स्वरूप है। किसी एक वस्तुमें विरुद्ध स्वरूप अनेक धर्मोंका विशेषणरूपसे भान होना संशय कहा जाता है जिस. 1 तरह-संध्यासमय कुछ अंधकार हो जानेके कारण किसी स्थाणु (सूखा पेड) को देखकर 'यह स्थाणु है है अथवा नहीं है ?' इसप्रकारके ज्ञानको संशय कह दिया जाता है क्योंकि यहांपर धर्मीस्वरूप एकही स्थाणुमें है स्थाणुत्व और उसके अभावस्वरूप, दोनोप्रकारके धौका विशेषण रूपमे भान है उसीतरह विशेष्य,
स्वरूप घट आदि किसी पदार्थमें विरुद्ध स्वरूप अस्तित्व नास्तित्व आदि अनेक धर्मोंका विशेषण रूपसे 5 भान है इसलिये एकही घट आदि किसी धर्मी में अस्तित्व नास्तित्व आदि विरुद्ध धर्मों का विशेषण रूपसे
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