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________________ व०रा० अध्याय स्वरूप अंश ई वह एक रूप है। दूसरा नास्तित्वरूप अंश है वह भी एक स्वरूप है तीसरा अवक्तव्य रूप अंश है वह अस्तित्व नास्तित्वका मिलापरूप दो स्वरूप है। यहांपर किमी द्रव्यार्थकी अपेक्षा अस्तित्व ||६| है। पर्यायविशेषकी अपेक्षा नास्तित्व है। ये दोनों धर्म आपसमें जुदे जुदे किंतु समुचितस्वरूप हैं क्योंकि यहां अस्तित्व नास्तित्व दोनों धर्मोंकी प्रधानतासे विवक्षा है तथा जहाँपर विशेष रूपसे द्रव्य और हा पर्यायकी अथवा सामान्य रूपसे द्रव्य और पर्यायकी अभेदरूपसे एक साथ विवक्षा है वहांपर अवक्तव्यः | स्वरूप तीसरा अंश है इसप्रकार 'स्यादस्ति च नास्तिचावक्तव्यश्चात्मा' यह सातवां भंग निर्वाधरूपसे || सिद्ध है। यह भंग भी सकलादेश है क्योंकि यहाँपर समस्त द्रव्यााँको अभेदरूपसे द्रव्य मानकर एक | || द्रव्यार्थ माना जाता है एवं समस्त पर्यायोंको अभेद रूपसे एक पर्याय मानकर पर्यायार्थ कहा जाता || ||६|| है इसरीतिसे जहाँपर जिस वस्तुकी विवक्षा की गई हो वहांपर समानजातीय मानकर अभेद सम्बन्धसे | समस्त वस्तुको एक द्रव्यार्थसे अभिन्न एक वा अभेदोपचारसे एक पर्यायसे अभिन्न एक मानकर विवक्षित वस्तुस्वरूपसे अन्य वस्तुस्वरूपका संग्रह किया गया है अर्थात् इस सप्तमभंगमें अस्तित्व | नास्तित्वविशिष्ट अवक्तव्यत्व स्वरूपसे जीवके अन्य समस्त स्वरूपोंका भी अभेद सम्बन्ध वा अभेदोपPI चारसे ग्रहण है इसलिये अन्य भंगोंके समान यह भंग भी सकलादेश है । अब वार्तिककार विकलादेशका स्पष्टीकरण करते हैं निरंशस्यापि गुणभेदादंशकल्पना विकलादेशः ॥२१॥ . खवरूपकी अपेक्षा जिसमें किसीप्रकारका विभाग नहीं अर्थात स्वस्वरूपकी अपेक्षा जो एक है। ऐसी वस्तुमें अंशोंकी कल्पना कर और भिन्न भिन्न रूपसे कल्पित गुण रूप अंशोंका स्वस्वरूप अर्थात् १२०१ PEECHEEROLOGISEASESSIRECEN ANRISUTNIHkoristnoksne
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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