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९०रा० पापा
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सौधर्मैशानयोः सागरोपमे अधिक ॥ २६॥ सौधर्म और ऐशान स्वर्गों के देवोंकी उत्कृष्ट आयु दो सागरसे कुछ आधिक है।
द्विवचननिर्देशाद् द्वित्वमिति ॥१॥ 'सागरोपमे यह प्रथमा विभाक्तिका द्विवचनांत निर्देश है इसलिये उसका 'दो सागर' यह अर्थ समझ | लेना चाहिये।
आधिके इत्याधिकार आसहस्रारात् ॥२॥ सूत्रमें 'आधिक' यह अधिकार है और यह आधिकार सहस्रार स्वर्गपर्यंत लिया गया है इसलिये । यहाँपर सूत्रका सौधर्म और ऐशान स्वर्गवासी देवोंकी उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक दो सागर प्रमाण है, 6 यह अर्थ समझ लेना चाहिये ॥२९॥ सूत्रकार अब सानत्कुमार और माहेंद्र स्वर्गनिवासी देवोंकी उत्कृष्ट स्थितिका उल्लेख करते हैं
सानत्कुमारमाहेंद्रयोः सप्त ॥३०॥ सानत्कुमार और माहेंद्र इन दोनों स्वगोंके देवॉकी आयु कुछ अधिक सात सागरका है।
__ अधिकारात्सागराधिकसंप्रत्ययः ॥१॥ सौधर्मशानयोरित्यादि सूत्रसे इस सूत्रमें सागर और अधिक शब्दको अनुवृति आती है इसलिये । सानत्कुमार और माहेंद्र स्वर्गनिवासी देवोंकी उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक सात सागर प्रमाण है, सूत्रका
से यह स्पष्ट अर्थ है ॥३०॥
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