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अध्याय
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स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धींद्रियावधिविषयतोधिकाः॥२०॥
आयु, प्रभाव, सुख, द्युति, लेश्याकी विशुद्धता, इंद्रियविषय और अवधिज्ञानका विषय ये सब बातें हूँ ऊपर ऊपरके वैमानिक देवोंमें अधिक अधिक है।
खोपात्तायुष उदयात् स्थानं स्थितिरिति ॥१॥ __ अपने द्वारा उपार्जित देवायु कर्मके उदयसे उस देव पर्यायमें ही देवोंका शरीर में रहनेका नाम स्थिति है।
शापानुग्रहलक्षणः प्रभावः॥२॥ ' अनिष्ट बातका कहना अर्थात् तेरा बुरा हो, तेरा अमुक पदार्थ नष्ट हो जाय, इत्यादि अनिष्ट
वचनोंका उच्चारण करना शाप है और इष्ट बातका कहना अर्थात् तुझे उत्तम पुत्रकी प्राप्ति हो, धनसंपत्ति % मिले इसप्रकार इष्ट वचनोंका उच्चारण करना अनुग्रह है। शाप और अनुग्रह करनेकी शक्तिकानाम प्रभाव है। प्रवृद्धो भावः प्रभावः अर्थात् जो बढा हुआ भाव हो उसका नाम प्रभाव है।
. सद्वेद्योदये सतीष्टविषयानुभवनं सुखं ॥३॥ ". __ सुखके मूलकारणस्वरूप सातावेदनीयके उदयसे इच्छानुसार स्त्री विभूति आदि वाह्य पदार्थोंके , है प्राप्त हो जानेपर जो उनके विषयका अनुभव-रसास्वादन करना है उसका नाम सुख है। "
शरीरवसनाभरणादिदीप्तिर्युतिः॥४॥ शरीर वस्र और भूषण आदि पदार्थोंकी दीप्तिका नाम युति है।
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