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अभ्या
ना है कि ग्रह आदि सवसे सूर्य और चंद्रमामें प्रधानता बतलाने के लिए 'सूर्याचंद्रमसौ' यह पृथक्रूपसे ॥६॥ भाषा || उल्लेख किया गया है। पांचों प्रकारके ज्योतिषी देवों में सूर्य और चंद्रमाका प्रभाव प्रकाश आदि अधिक 15|| है इसलिए ये ही प्रधान हैं।
. . सूर्यस्यादौ ग्रहणमल्पान्तरत्वादभ्यार्हतत्वाच्च ॥९॥ जिसमें थोडे स्वर-अक्षर होते हैं और जो अभ्यर्हित-उत्तम, होता है वह द्वंद्वसमासमें व्याकरण || | | शास्रके अनुसार अधिक स्वरवाले और गौण शब्दसे पहले रक्खा जाता है। चन्द्रमाकी अपेक्षा सूर्यमें कम
खर हैं और वह अपने प्रचण्ड तेजसे चन्द्रमा आदि सबको दबा देनेवाला होनेसे अभ्यर्दित है इसलिये चंद्रमासे पहिले सूर्य शब्द रक्खा गया है।
• ग्रहादिषु च ॥१०॥ जिसतरह सूर्य चंद्रमामें अल्पाच्तर और अभ्यर्हित हेतुओंके बलसे सूर्य शब्दके पूर्वनिपातकी व्यवस्था || कर आये हैं उसीप्रकार ग्रह आदिमें भी समझ लेना चाहिये । नक्षत्रकी अपेक्षा ग्रहपद थोडे स्वरवाला और हा अभ्यर्पित है इसलिये नक्षत्र पदसे ग्रहपदका पूर्वनिपात किया गया है। तारका शब्दकी अपेक्षा नक्षत्र
अभ्यर्हित है इसलिये तारका पदसे पहिले नक्षत्र शब्दका उल्लेख किया है। अब वार्तिककार सूर्य चंद्रमा । PI आदिके रहनेके स्थानका निरूपण करते हैं|| इस भूमिके समतल भागसे सातसौ नब्वे योजनकी ऊंचाई पर समस्त ज्योतिषी देवोंमें सबसे नीचे 3 रहनेवाले तारकाओंका भ्रमण है। उनसे दश योजन की उंचाईपर सूर्योका संचार है। उनसे अस्सी |१०२५ || योजनकी ऊंचाई पर चंद्रमा भ्रमण करते हैं। उनसे तीन योजनकी ऊंचाई पर नक्षत्र, उनसे तीन योज
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