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________________ ma SEAS मध्यान - ---- ६ निकायोंमें आदिके तीन निकायोंमें पीत पर्यंत लेश्या है अंतके तीन निकायोंमें वा मध्यके तीन निका. परायोंमें नहीं है। आदित' शब्दका अर्थ आदिमें होनेवाला है । व्येकनिवृत्त्यर्थं त्रिग्रहणं ॥२॥ दो वा एक निकायकी निवृचिकेलिए सूत्रमें त्रि शब्दका ग्रहण किया गया है अर्थात् दो वा एक || निकायमें पीतपर्यंत लेश्या नहीं है किंतु आदिके तीनों निकायोंमें हैं। यदि यहांपर यह शंका की जाय कि दो वा एक निकायमें पीतपर्यंत लेश्या नहीं हैं, यही त्रिशब्दके उल्लेखका फल क्यों, चारो निकायोंमें पीतपर्यंत लेश्या नहीं है यह क्यों नहीं ? इसका समाधान यह है कि सूत्रों आदितः' इस शब्दका भी उल्लेख है उसकी सामर्थ्यसे चारो निकायोंमें पीतपर्यंत लेश्याओंका संभव नहीं। क्योंकि चौथी निकायको आदित्व नहीं प्राप्त हो सकता यदि कदाचित् चारो निकायोंमें पीतपर्यंत लेश्या कहनी होती तब फिर 'आदितः' शब्दका उल्लेख निरर्थक था। लेश्यावधारणार्थ पीतांतवचनं ॥३॥ ___ ऊपर, छह लेश्यायें कही गई हैं उनमें भवनवासी आदि तीन निकायोंमें चार लेश्याओंके प्रतिपादन करनेकेलिए सूत्रमें पीतांत शब्दका उल्लेख किया गया है। पीतका अर्थ तेज है । जिन लेश्याओं के अंतमें पीत लेश्या हो वे पीतांत कहे जाते हैं तथा जिन देवोंके पीतांत लेश्या हों वे पीतांतलेश्य कहे जाते हैं। तात्पर्य यह है कि-आदिके भवनवासी व्यंतर और ज्योतिष्क तीनों निकायों में देवोंकी कृष्ण नील कापोत और पीत ये चार लेश्या होती हैं ॥२॥ विशेष-यदि "आदितस्त्रिषु पीतांतलेश्या:" इसकी जगह लाघवार्थ "त्रिनिकायाः पीतांतलेश्याः' - WISHESABREASTROOPRRIANERY E ARABINDABASINE ER L Ma music
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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