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अध्याय
को ज्ञान शून्य माना है इसलिये शरीररहित होनेके कारण जिसप्रकार उनके मतमें मुक्तात्मा ज्ञानशून्य 15 है उसीप्रकार ईश्वर भी ज्ञानशून्य ही है। यदि कदाचित् ईश्वरको ज्ञानका आधार माना जायगा तो
मुक्तात्माको भी जबरन ज्ञानका आधार मानना पडेगा। क्योंकि अशरीरवरूपसे दोनों समान हैं | इत्यादि विशेष वर्णन श्रीश्लोकवार्तिकमें विस्तारसे किया गया है ॥३१॥
इसप्रकार यह तत्त्वार्थराजवातिक व्याख्यानालंकारमें तीसरा अध्याय समाप्त हुआ॥३॥
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इति तृतीयोध्यायः।