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यद्यपि नित्यज्ञानत्व हेतुमें अन्वय व्याप्ति नहीं बन सकती क्योंकि यह नहीं कहा जासकता कि नित्य- ज्ञानवान होकर जगतका कर्ता ईश्वरसे अतिरिक्त अमुक पदार्थ है परंतु यहां व्यतिरेक व्याप्तिका अभाव नहीं क्योंकि हम लोग जगतके कर्ता भी नहीं और नित्यज्ञानवान भी नहीं। इसरीतिसे व्यतिरेक व्यासिके बलसे नित्यज्ञानत्व हेतु, ईश्वरको जगतका कर्ता सिद्ध कर सकता है सो ठीक नहीं। जिससमय ७ किसी विशेष ज्ञानकी अपेक्षा न कर ज्ञान संतानकी अपेक्षा की जायगी उस समय हम भी नित्यज्ञानवान 1 है क्योंकि हमारे भी कभी सामान्यरूपसे ज्ञानका अभाव नहीं हो सकता। यदि सामान्यरूपसे भी ज्ञान
की नास्ति हो जायगी तो आत्मा पदार्थ ही न सिद्ध हो सकेगा । इसरूपसे जब हमी नित्यज्ञानवान ले सिद्ध होगये तब नित्यज्ञानस्वरूप हेतुकी व्यतिरेक व्याप्ति न सिद्ध हुई इसलिए वह ईश्वरमें जगत्कर्तृत सिद्ध नहीं कर सकता। यदि वहांपर यह कहा जाय कि
ऊपर जो जगत्कर्तृत्वकी सिद्धिमें नित्यज्ञानव हेतु दिया गया है वह विशेष ज्ञानकी अपेक्षा है। विशेष ज्ञान किसीका नित्य हो नहीं सकता इसलिये हम लोगोंमें नित्यज्ञानत्वका अभाव होनेसे नित्य 5 ज्ञानत्व हेतुकी विपरीत व्याप्ति सिद्ध हो सकती है, कोई दोष नहीं ! सो ठीक नहीं। वेधसो बोधो न नित्यः, बोधत्वात् अन्यबोधवत्' अर्थात् जिसप्रकार ईश्वरसे अतिरिक्त अन्य मनुष्योंका ज्ञान नित्य नहीं
उसीप्रकार ईश्वरका भी ज्ञान, ज्ञान होनेसे नित्य नहीं हो सकता। इसरूपसे जब ईश्वरका ज्ञान नित्यज्ञान है नहीं तब नित्यज्ञानत्व हेतु जगत्कर्तृत्वरूप साध्यको सिद्ध नहीं कर सकता। शंका
ईश्वर हम लोगोंकी अपेक्षा एक विशिष्ट व्यक्ति है इसलिए उसका ज्ञान भी विशिष्ट होना चाहिये, इसरीतिसे ईश्वरमें ज्ञान भी सिद्ध हो सकता है और वह ईश्वरज्ञान नित्य भी हो सकता है । यदि ईश्वरके
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