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________________ ७५ तो स्वयं इसका उपदेश कर रहे हैं इसलिए उन्होंने तो अन्यमतके विद्वानोंका अवश्य ही मान किया होगा। . स्वामीजीने अन्यमतके आचार्यों और विद्वानों एवं उनके उपास्य देवोंका सन्मान जिनं प्रशंसनीय शब्दोंमें किया है उनमेसे थोडेसे शब्द नमूनेके तौरपर हम यहांपर लिखते हैं। [१] " सनातनधी विद्वानों के माननीय भागवतादि पुराणों के निर्माताका सन्मान.!" . . वाहरे वाह ! भागवतके बनानेवाले लाळ बुजक्कड ! क्या कहना तुझकों ऐसी २ मिथ्या बातें लिखने में तनिक भी लज्जा और शरम न आई निपट अंधा ही वनं गया। भला इन महा झूठ बातोंको वे अंधे पोप और वहिर भीतरकी फूटी आंखोवाले उनके चेले भी सुनते और मानते हैं बड़े आश्चर्यकी बात है कि ये मनुष्य हैं या अन्य कोई !!! इन भागवंतादि पुराणों के बनाने हारे जन्मते ही क्यों नहीं गर्भ झी नष्ट हो गये ? वा जनाते समय मर क्यों न गये ? . [ स० प्र० पृष्ठ ३३०] [२]"मूर्तिपूजक देवपूजा करनेवाले विद्वानोंका सन्मान!" गौर आप पराधीन भठयारे के टट्ट और कुम्हार के गधेके समान शत्रुओं के वशमे होकर अनेक विधि दुःख पाते हैं...... जब कोई किसीको कहे कि हम तेरे बैठने के आसन वा नामपर पत्थर धरे तो जैसे वह उसपर क्रोषित होकर मारता वा गाली प्रदान करता है वैसे ही जो परमेश्वरके उपासनाके स्थान हृदय और नामपर पापाणादि मूर्तियां धरते हैं उन दुष्ट बुद्धिवालोंका सत्यानाश परमेश्वर क्यों न करे। [सत्या० पृ० ३१२]
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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