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________________ . सज्जनो ! हम ऊपर लिख चुके हैं कि खंडन मंडनकी पद्धति कुंछ नवीन नहीं किन्तु प्राचीन है स्वामी शंकराचार्यजी तथा अन्य कितनेक विद्वानों के समय तक वह अधिकांश प्रशस्त ही रहीं मगर वर्तमान समयमें उसे नो अधिक भयानक रूप प्राप्त हुआ है इसका कारण हमारे वर्तमान समयके महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वतीजी हैं ! यह बात प्रस्तुत पुष्पके पढ़नेसे स्फुट हो जायगी ! स्वामी दयानंद सरस्वतीजीने अन्य मतोंके खंडनमें बहुत असंकीर्णतासे काम किया है, उसपर भी जैनधर्मके विषय मतो उसकी मात्रा और भी अधिक बढ़ गई है। स्वामीजीके उक्त विचार कहांतक सत्य और आदरणीय हैं इसी विचारको प्रस्तुत "मध्यस्थ बाद ग्रंथमाला" के "स्वामी दयानन्द और नैनधर्म" नामके इस प्रथम पुप्पमें दर्शाया गया है। स्वामीजीके संबंघमें जैनधर्मके सिद्धान्तानुसार हमने जिन बातोंका उल्लेख किया है उनके उचितानुचितपनेकी मीमांसा करनी पाठकोंका काम है. हमे इसमें हस्तक्षेप करनेका अधिकार नहीं । हमने तो • भपने विचारोंको सभ्य संसारके समक्ष उपस्थित करदिया है। इसके सिवा उक्त ग्रन्थमालाके और भी कितनेक पुष्प लिखने का हमारा विचार है । उनमें अधिकांश दार्शनिक विषयके ही लेख रहेंगे इस लिए प्रस्तुत पुष्प में हमने जहां कहीं " इस विषय पर हम कहीं अन्यत्र विचार करेंगे, इसका विस्तार पूर्वक सप्रमाण वर्णन कहीं अन्यत्र किया जायगा" ऐसा लिखा हुआ हो उससे पाठक यही समझें कि उसका उल्लेख उक्त ग्रंथमालाके किसी अन्य पुप्पमें किया नायगा. पाठकों को इतना अवश्य स्मरण रहे कि अन्य पुष्पोमें भी जो दार्शनिक विषयों का उल्लेख किया जायगावह हठवादको सर्वथा अलग रखकर ही किया जायगा।
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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