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________________ ४४ . . पंद्रह फूटकी होता है तो क्या " स्वामीजी " के कथनानुसार इसका यह अर्थ करना चाहिये कि, लिखनेवाला पंद्रह फूटकी । चिड़ी अथवा बिल्ली या कबूतर बतलाता है ? नहीं ! कदापि नहीं । लिखनेवाला स्पष्ट बतला रहा है कि, पंचेंद्रिय जीवों में ऐसे भी कितनेक जीव हैं जो कि दो इंचके हो और ऐसे भी । हैं कि जिनका पंद्रह फूटका शरीर होता है, जैसे हस्ती आदि। जानवर. इसी प्रकार जैन ग्रंथोंके उल्लेखका आशय समझनां चाहिये । अर्थात् चतुरिद्रिय जीव यदि कोई बड़ेसे बड़ा हों तो वो एक योजन तकका हो सकता है, परंतु वह भी मक्खी या मच्छर अथवा विछू ही हो यह नियम नहीं. कल्पना करो कि, किसीने कहा कि मनुष्यादि प्राणी न्यूनसे न्यून एक सैफंड और अधिकसे अधिक सो वर्ष तकका आयु भोग सकते हैं, तो क्या इसका यह भी अर्थ हो सकता है ? कि कोई चार दिन या दश दिनका आयु भोग कर नहीं मरता ! नहीं ! सर्वथा नहीं ! अथवा कोई कहे कि, मनुष्य न्यूनसे न्यून तीन हाथका और अधिकसे अधिक सात हाथका ऊंचा होता है, तो क्या इस कथनसे चार अथवा पांच हाथके मनुष्यका अभाव ही समझना चाहिए ? हम नहीं समझते कि, फिर " स्वामीजी " ने उक्त विषयको महाझूठ कहते हुए क्यों नहीं संकोच किया ? [ग] स्वामी दयानंद स०--अब सुनिए भूमिके परिमाणको (रत्नसार भा. पृ. १५२) इस तिरछे लोकमें असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं इन असंख्यातका प्रमाण अर्थात् जो अढाई सागरोपम कालमें जितना समय हो उतने द्वीप तथा समुद्र जानना अब इस पृथिवीमें एक "जंबूद्वीप". प्रथम : -
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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