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________________ १७ मत सौत्रांतिक, वैभापिक, योगाचार और माध्यमिक इन चार अवांतर भेदों का वर्णन करते हुए जैन धर्मको इनके अंतर्निविष्ठ नहीं किया. (३) महर्षि वेद व्यासजीने ब्रह्मसूत्रमें जैन और बौद्ध मतका परस्पर कुछ भी संबंध नहीं बतलाया. (४) स्वामी शंकराचार्य से लेकर जितने भी प्रसिद्ध विद्वानोंने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य रचे हैं, उनमेंसे ऐसा एक भी नहीं जिसने एक दूसरेसे सर्वथा संबंध न रखनेवाले बौद्ध और जैन मतका प्रतिपादन और खंडन न किया हो ! स्वामी शंकराचार्य स्पष्ट लिखते हैं "निरस्तः सुगतसमयः विवसनसमयइदानीं निरस्यते” २-२-३१. (५) बौद्धों का क्षणिकवाद और जैनोंका स्पाद्वाद इन दोनोंका आपस में सदैवसे ३६का संबंध है. (६) हनुमन्नाटक ग्रंथमें भी जैन और बौद्धको भिन्न भिन्न माना है. श्लोक. २. (७) बौद्ध ग्रंथोंमें जैन मतका बहुतसा प्रतिवाद देखने में आता है, एवं जैन ग्रंथोंमें भी बौद्ध स्वीकृत क्षणिक वादके खंडन की कमी नहीं ! | 1 (८) प्राचीन ग्रंथों में स्याद्वादी और क्षणिकवादी इन दो शब्दोंका अर्थ क्रमशः जैन और बौद्ध किया हुआ देखा जाता है. . (९) पाश्चात्य विद्वान् मि. . हर्मन जेकोबीने आचारांग, उत्तराध्ययन और सूत्रकृतांग जैन सूत्रोंके इंगलिश भाषांतरकी : प्रस्तावनामै इस अंधकार को बड़े ही सबल प्रमाणोंसे दूर किया है ! परंतु स्वामी " दयानंद " सरस्वतीजीने जैन और . - . · - एक लिख मारा इसका उत्तर हमारी.. : बौद्धको किस आशय से बुद्धिसे बाहिर है !
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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