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________________ १४ और यवन धर्मपुस्तक कुरानको माननेवाले नहीं थे! इसमें कुछ संदेह नहीं कि यदि कोई प्रौढ़ शासन " स्वामीजी के हाथमें होता तो वेदोंपर श्रद्धा न रखनेवाले जैन और बौद्ध आदिके साहित्यसे भी वही काम लिया जाता जो कि यवनोंके शासनमें हमाम गरम करनेके लिये . अमूल्य हिंदु साहित्यसे लिया गया था ! पाठक महोदय ! क्षमा कीनिये हमको विवश होकर येह शब्द लिखने पड़े हैं !!! . [प] "स्वामीजी महारान चार्वाकके साथ बौद्ध और जैनोंका पुनर्जन्म परलोक और मुक्ति आदिके माननेसे कितने ही अंशोंमें भेद दिखलाते हुए भी उन्हे एक बतला रहे हैं ! इसी तरह यदि कोई स्वामीजीके संबंध कहे कि, "ईश्वर, वेद और पुनर्जन्मको छोड़कर, स्वर्ग-नरक-देवपूजा और पितृश्राद्ध आदिके न माननेमें "स्वामीजी" भी चार्वाक (नास्तिक )के .समान ही हैं" तो क्या कुछ अनुचित होगा ? हमारे ख्यालमें इस प्रकारका क्षुद्र लेख महात्माकी प्रशस्त लोखनीका विषय नहीं होना चाहिये ! बौद्ध और जैनोंको जो "स्वामीजी ने नास्तिक बतलाया है, इसके बारेमें हम अधिक कुछ न लिखते हुए अपने पाठकोंसे इतनी ही प्रार्थना करते हैं कि, वे हमारी बनाई हुई "जैनास्तिकत्व मीमांसा" नामकी पुस्तकको देखें. "जैन बौद्धकी एकता और स्वामी दयानंद" स्वामी द० स० - "जिनको बौद्ध तीर्थकर मानते हैं उन्हींको जैन भी मानते हैं" (पृष्ट १०५)
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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