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________________ " वेदादी शास्त्रमें विहित मद्यमांस और मैथुनमें दोष नहीं है क्योंकि जिसका विधान किया गया वह धर्म कोटीमें आ गया । वाजपेय यज्ञमें सुराके ग्रहोंका विधान है। सौत्रामणि यज्ञमें सुरा नाम मद्यका विधान है । अमिष्टोमादि यज्ञॉम अमिषोमीय आदि पशुका विधान और वहां शेष मांसभक्षणका मी विशेष विधान स्पष्ट रूपसे विस्तारके साथ किया गया है." त्रा० भा० ४ अं. ५ पृ. १९४] " हमारी तो राय यह है कि, जिन लोगोंका मत यह है कि, वेदमें मद्यमांसादि सर्वथा नहीं वा है तो प्रक्षिप्त है अथवा उसका अर्थ ही कुछ और है ऐसा माननेवाले सभी आर्यसमाजिोंके बड़े भाई वेद विरोधी है कि जो वेदके प्रत्यक्ष सिद्धांतको लौटना चाहते हैं " [त्रा० मा० ४ अं. ५ पृ. १९५] तथा संस्कृतरत्नाकर के सम्पादक-न्यायशास्त्री-व्याकरणाचार्य पंडित गिरिधर शर्मा चतुर्वेदीजी "स्मृतिविरोधपरिहार" नामकी पुस्तकमें लिखते हैं कि--"यह कौन प्रतिज्ञा कर सकता है कि यज्ञोंमें पशु हिंसा नहीं है । यदि ऐसा ही होता तो जैन बौद्ध आदि संप्रदाय सनातन आर्यधर्मसे पृथक क्यों होते ? हां आज कहीं के नव्यसमाजी वा कोई कोई वैष्णव भी किसीची देखा देखी विना अपने धर्म समझे चाहे यह कहनेका साहस कर कि वेदोंमें पशु हिंसा नहीं है, परंतु वैष्णवों के आदि आचार्य भगवान् श्री रामानुजस्वामी " अशुद्धमिति चेन्न शब्दात् " ३-१-२५ सूत्रके भाप्यमें स्पष्ट वेदमें पशु हिंसा विधिको स्वीकार करते हैं " [प्रकाशक अध्यक्ष-श्री सरस्वती भंडारकाशी पृष्ट. ६७] एवं जिस प्रकार " स्वामीजी” महीधरादिके भाप्योंका अनादर कर रहे हैं, इसीप्रकार आजकलके बहुतसे
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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