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________________ १२५ सुनते ही ( उस ) रथीको प्रतिबोध हो गया शीघ्र ही गुरुके पास जाय दीक्षा ले ( सन्यास व्रत धारण कर ) चारित्र पालने लगा कोशा भी श्रावक (जैन गृहस्थ ) का धर्म पालती हुई सद्गतिको प्राप्त हुई।" ... अब पाठक विचार सकते हैं कि, इसमें कौनसी अनुचित बात है ? जिससे स्वामीजी जैन साधुओंकी लीला बतलाते हैं ! सज्जनों ! स्थूलभद्र के चरित्रमें जो कोशा वेश्याका सरसोंकी ढेरीपर नाचना लिखा है, इसको स्वामीजी बहुत गप्प मानते हैं ! आप लिखते हैं कि, " कोशा वेश्या चाहे उसका शरीर कितना ही हलका हो तो भी सरसोंकी ढेरीपर सूई खड़ी कर उसके ऊपर नाचना सूईका न छिदना और सरसोंका न 'विखरना अतीव झूठ नहीं तो क्या है ? " परंतु हमारे पाठकोंमेंसे जिन्होंने फरी सन् १९१२ की सरस्वती मासिक पत्रिकामें नर्तकाचार्य पंडित गिरधारीलालजी तिवारीजीकी * जीवनीको पढ़ा होगा उन्हें कहना पड़ेगा कि, उक्त काम * इनकी (तिवारीजीकी) अन्यान्य जीवन संबंधी घटनाओंका वर्णन करते हुए नृत्यकलाके संबंधमें लिखा है कि-"(जयपुरमें) पंडितजीने होज़में भरे हुए पानीकी सतहपर कोई पांच मिनट तक नृत्य किया ! तब तो उन लोगोंके होश उड़ गए और पंडितजकी बड़ी प्रशंसा हुई।......तलवारोंपर, आरोंकी धारोंपर, पहियेपर लगी हुई कीलोंकी नोकोंपर भी आप सुगमतापूर्वक नाचते हैं। फर्शपर और धारदार चीजोंके ऊपर नाचते समय आपका पैर बराबर एकसा रहता और गिरता है ।......आप अपने शरीरका हलेकापन दिखानेके लिये फर्शपर शकरके बताशे बिछवाकर उनपर नाचते हैं। उनपर आप खूब घूमते हैं खूब चलते हैं पर क्या मजाल जो एक भी बताशा फूट जाय । आप थालियोंकी उठी हुई दीवारोंपर भी नाचते हैं । थालियोंमें पानी भी उस समय आप भरालेते हैं।
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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