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________________ १२१ विचारे कि इनके साधु गृहस्थ और तीर्थकर जिनमें बहुत से वेश्यागामी परस्त्रीगामी चोर आदि सब जैनमतस्थ स्वर्ग और मोक्षको गये और श्री कृष्णादि महा धार्मिक महात्मा सब नरकको गये यह कितनी बड़ी बुरी बात है ! प्रत्युत विचारके देखें तो अच्छे पुरुषको जैनियोंका संग करना उनको देखना भी बुरा है ! क्योंकि जो इनका संग करे तो ऐसी ही झूठी २ बातें उसके भी हृदयमें स्थित हो जायेंगी क्योंकि इन महा हठी दुराग्रही मनुष्योंके संगसे सिवाय बुराइयों के अन्य कुछ भी पल्ले न पड़ेगा । हां जैनियोंमें जो उत्तम जन हैं उनसे सत्संगादि करनेमें कुछ भी दोष नहीं [ इसपर स्वामीजीने एक नीचे नोट दिया है ]; जो उत्तम जन होगा वह इस असार जैन मतमे कभी न रहेगा ] [सत्यार्थ प्रकाश पृष्ट ४४३ - ४४४] ( ? ) समालोचक - स्वामीजी जैन साधुओंकी लीला दिखाते हुए कहते हैं कि - "एक जैन मतका साधु कोशा वेश्यासे भोग करके पश्चात् त्यागी होकर स्वर्ग लोकका गया" भला इस कथनसे जैन साधुओं की उन्होंने क्या लीला दिखाई ? " पश्चात् त्यागी होकर स्वर्ग लोकको गया" इसमें कौनसी लीला की बात है ? यदि कोई बेश्यालंपट मनुष्य वेश्या गमनको बुग समझ के त्याग दे, और सर्वथा निवृत्ति मार्ग अवलंबनसे अपने आत्माको सुधार ले तो क्या यह लीला है ? हां जैनशास्त्रानुसार साधुवेष धारण करनेके पश्चात् नो वेश्या . ११
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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