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________________ सूत्र-विभाग-११ 'ब्रह्मचर्य अणुव्रत' व्रत पाठ [ ६३ पर कुदृष्टि न हो, चोर का हाथ न लगे, अग्नि जलादि का सकट न आवे। ५. कर्त्तव्य · लोभ पर अकुश रखना,, अभाव को जीतना, आय के अनुसार जीवनयापन करना, हाथ का सच्चा रहना। ६. भायना : सुक्तादि पर विचार करना। 'पूर्ण अचौर्य कब आवेगा'-यह मनोग्य करना। अचौर्य की अपूर्णता का खेद करना। चोरी करने वाले विजय चोर, सुलसा आदि की तथा चोरो न करने वाले 'श्रीपति' आदि की कथा पर ध्यान लगाना। पाठ ११ ग्यारहवाँ ६. 'ब्रह्मचर्य अणुव्रत' व्रत पाठ __ चौथा अणुव्रत 'थूलामो मेहरगानो वेरमणी : मैथुन (अब्रह्मचर्य) से हटना. सदार : अपनी विवाहिता स्त्री में (स्त्री के लिये सभत्तार): (अपने विवाहित पति मे) सतोसिए : सतोष करता (करती) हूँ। मूलग भन्ते ! मेहुणं पच्चपणामि ।'
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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