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________________ सुबोध जैन पाठमाला--भाग २ . वेरमरण १. कन्नालीए : विरमग, (हटना)। : कन्या (वर आदि मनुष्य) सम्बन्धी झूठ २. गोवालीए ३. भोमालीए : गाय (भैस अादि पशु) सम्बन्धी झूठ : भूमि (धन आदि शेप द्रव्य)सम्वन्धी ४: पासावहारो : धरोहर दबाने के लिए झूठ (थापरणमोसो) : धरोहर सम्बन्धी सूट ५. कूड-सविखज्ने : कूडी साख (झूठी साक्षी) इत्यादिक मोटा भूठ बोलने का पच्चक्खारण (करता हूँ)। जावज्जीवाए। दुविहं तिविहेग-१. न करेमि, २. न कारवेमि, १. मरणसा २. वयसा ३. कायसाई अतिचार पाठ ऐसे दूसरे मृषावाद विरमरण दूजा-स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के पंच अइयारा' व्रत के विषय मे जो कोई जारिणयव्वा न समायरियन्वा अतिचार लगा हो, तो तं जहा-ते पालोउं आलोउ१ सहसभक्खाणे : सहसा कार से किसी के प्रति कूडा आल (झूठा दोष) दिया हो, २. रहस्सब्भक्खारणे : एकान्त मे गुप्त बातचीत (आदि) करते हुए व्यक्तियो पर 'झूठा आरोप लगाया हो, शा "पूलगं, भंते मुसावायं पच्चक्खामि ।' इतना और । 'तस्स भते ! पंजियमामि (४) 1', इतना और 1
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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