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________________ २६ । सुबोध जैन पाठमाला--भाग २ मिथ्यात्व को दूर करता है। सम्यक चारित्र राग-द्वेष को नष्ट करता है और सम्यक्तप कर्म-बन्धन को तोडता है। कर्म-वन्धन के सर्वथा क्षय से तत्काल प्रात्मा देह से पृयक हो जाती है और उस दु ख मूल देह से पृयक् होकर अनत और एकांत सुखमय मोक्ष को प्राप्त कर लेती है । इसीलिए जो भी प्राणी दुख का नाश करके अनंत सुख और एकात सुख चाहते है, उनके लिए धर्म आवश्यक है। उसी धर्म का ही आगामी चौथे आवश्यक मे वर्णन किया जायेगा। मोक्ष अनंत सुखमय कैसे है और एकात सुखमय कैसे है ?यह बता देना अधिकत. वारणो से परे की बात है। फिर भी जिनेश्वरों ने उपमा आदि के द्वारा उसके, सम्बन्ध मे पर्याप्त प्रकाश दिया है। इतना होते हुए भी यदि किन्हीं को मोक्ष-सुख समझ मे न आवे और वे. भौतिक सुख में ही सुखानुभव करे, तो उनके लिए भी धर्म क्रिया लाभदायी ही है। क्योकि वह ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म को दूर करके ज्ञान-शक्ति देती है। अमातो वेदनीय को दूर करके विषय-सुख और मन-वचन-काया के सुख देती है। मोहनीय को मन्द करके पुरुषत्व देती है। अशुभ आयुष्य दूर करके शुभ और दीर्घ आयुष्य (जीवन) देती है। अशुभ नाम दूर करके श्रेष्ठ शरीर देती है। अशुभ गोत्र दूर करके धनादि-ऐश्वयं प्रदान करती है और अन्तराय दूर करके ऐश्वर्यादि की प्राप्ति मे आने वाली बाधामो को दूर करती है। धर्मक्रिया के प्रताप से आत्मा भावी जन्म मे इन्द्र और चक्रवर्ती आदि के सुख प्राप्त करती है। इस प्रकार जो प्राणी भौतिक सुख चाहते हैं, उनके लिए भी धर्म की क्रिया आवश्यक है।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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