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________________ सूत्र-विभाग-४ "इच्छामि खमासमणो' का पाठ [ २१ और गुरु की भूमि मे प्रवेश किये हुए हो, तो बाहर निकल जाये। दूसरी बार भी इसी प्रकार पढे । मात्र अन्तर यही है कि दूसरी बार मे 'पावस्सियाए पडिकमामि' न कहे, खडे न हो, बाहर भी न निकले। दोनो खमासमरणो मे सब आवर्तन बारह, शिर झुकाव चार, प्रवेश दो और निकलना एक बार होता है। ३ 'इच्छामि खमासमणों' उत्कृष्ट वन्दन का पाठ वन्दन अनुमति इच्छामि : मै चाहता हूँ। खमासमरणो! : हे, क्षमा ( आदि १० धर्म युक्त ) श्रमण । वंदिउं : . उत्कृष्ट) वन्दना करना। • जावरिणज्जाए : (घुटने आदि की) शक्ति के अनुसार। निसीहियाए। : अपने योगो को पाप-क्रिया से हटा कर (आपकी परिमित भूमि मे प्रवेश करके।) अणुजारणह मे मुझे आज्ञा (स्वीकृति) दीजिए। मिउग्गह। : आपकी परिमित भूमि मे प्रवेश की। चरण-स्पर्श, क्षमा-याचना व शाता-समाधि प्रश्न निसीहि : पाप-क्रिया से हट कर (तथा परिमित भूमि मे प्रवेश करके वज्रासन से)।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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