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________________ ___२७० ] मुबोध जैन पाठमाला-भाग २ साधु के लिए ७२ हाथ तथा साध्वी के लिए ६६ हाथ वस्त्र का प्रमाण माना है। पात्र का प्रमाण ४ चार माना है। इसके उपरान्त वस्त्र पात्र रखना तीथंकरो ने ममता का कारण व परिग्रह कहा है। उपधि अर्थात् उपकरण के दो भेद । १. प्रोधिक : जिन्हे सामान्यत सभी साधु साध्वियाँ अपने पास सदा ही रखते है, जैसे मुखवस्त्रिका, रजोहरण प्रादि । २ प्रौपग्रहिक : जिन्हे यतना और वृद्धावस्था मादि कारणों से कुछ ही साधु'साध्वियां रखते हैं, जैसे दण्ड, पाट प्रादि । पांचवो परिस्थापनिका समिति का स्वरूप उच्चार-प्रश्रवण - खेल - सिंघारण -जल्ल -परिस्थापनिका समिति : विवेकपूर्वक उच्चारादि. परवना ('फिर से ग्रहण न करे' इस प्रकार त्यागना) अर्थात् किसी जीव की विराधना हो, इसलिए स्थंडिल के दश दोष टालने का उपयोग रखकर न उच्चारादि परटुवना। उच्चारण-प्रश्रवण - खेल -सिंघाण-जल्ल- परिस्थापनिका समिति के चार भेद-१' द्रव्य २ क्षेत्र ३ काल और ४. भाव । १. द्रव्य से-उच्चारावि परिस्थापन योग्य द्रव्य, अस स्थावर जीव देखकर और पूंजकर परिस्थापन करे- परिस्थापना योग्य पाठ द्रव्यो के नाम-१ उच्चार=मल, २. प्रश्रवण-मूत्र, ३. खेल-मुंह से निकलने वाला श्लेष्म, ४. सिधारण नाक से निकलने वाला श्लेष्म, ५. जल्ल=शरीर का मल, ६.माहार.. अप्रासुक अनेषणीय शरीर प्रतिकूला अशनादि. ७. उपषि--
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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